काके गए वसन पलटि आए बसन
kake gaye wasan palati aaye basan
काके गए वसन पलटि आए बसन,
सु मेरो कछु बस न रसन उर लागे हौ।
भौंहै निरछौहै कवि सुंदर सुजान सोहै,
कछु अलसौहै गौहै जाके रस-पागे हौ।
परसों मैं पाँय हुते परसौ मैं पाय गहि,
परसौ वे पाय निसि जाके अनुरागे हौ।
कौन वनिता के हौ जू कौन वनिता के हौ सु,
कौन वनिता के बनि, ताके संग जागे हौ?
- पुस्तक : रीति शृंगार (पृष्ठ 26)
- संपादक : डा० नगेंद्र
- प्रकाशन : साहित्य-सदन
- संस्करण : 1963
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