सजल रहत आप औरन को देत ताप
sajal raht aap auran ko det tap
सजल रहत आप औरन को देत ताप,
बदलत रूप और बसन बरेजे में।
ता पर मयूरन के झुंड मतबारे साले,
मदन मरोरै महा झरनि मरेजे में॥
कवि लछिराम रंग साँवरो सनेही पाय,
अरजि न मानै हिय हरषि हरेजे में।
गरजि-गरजि विरहीन के बिदारे उर,
दरद न आवै, धरै दामिनी करेजे में॥
- पुस्तक : रीति श्रृंगार (पृष्ठ 240)
- संपादक : डा० नगेंद्र
- रचनाकार : लछिराम
- प्रकाशन : साहित्य-सदन
- संस्करण : 1963
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