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अड़ि जात बाजी औ गयंद गन गड़ि जात

aDi jat baji au gayand gun gaDi jat

बेनी बेंतीवाले

बेनी बेंतीवाले

अड़ि जात बाजी औ गयंद गन गड़ि जात

बेनी बेंतीवाले

और अधिकबेनी बेंतीवाले

    अड़ि जात बाजी गयंद गन गड़ि जात,

    सुतुर अकड़ि जात मुसकिल गऊ की।

    दामन उठाय पाय धोखे जो धरत होत,

    आप गड़ काप रहि जात पग मऊ की॥

    बेनी कवि कहै देखि थर-थर काँपै गात,

    रथन को पथ बिपति बरदऊ की।

    बार-बार कहत पुकारि करतार तोसों,

    मीचु है कबूल पै कीच लखनऊ की॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : साहित्य प्रभाकर (पृष्ठ 358)
    • संपादक : महालचंद बयेद
    • रचनाकार : वेनी बेंतीवाल
    • प्रकाशन : ओसवाल प्रेस कलकत्ता
    • संस्करण : 1937

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