चंद अरबिंद बिंब बिद्रम फनिंद सुक
chand arbind bimb bidram phanind suk
घनश्याम शुक्ल
Ghanshyam shukla
चंद अरबिंद बिंब बिद्रम फनिंद सुक
chand arbind bimb bidram phanind suk
Ghanshyam shukla
घनश्याम शुक्ल
और अधिकघनश्याम शुक्ल
चंद अरबिंद बिंब बिद्रम फनिंद सुक,
कुंदन गयंद कुंद कली निदरति है।
चंपा संपा संपुट कदलि घनश्याम कहाँ,
कुंकुम को अंगराग अंगन करति है॥
केहरि कपोत पिक पल्लव कालिंदी घन,
दरके निरखि दाह्यो छतिया बरति है।
मेरे इन अंगन की नकल बनाई बिधि,
नकल विलोके मोहिं कल ना परति है॥
- पुस्तक : साहित्य प्रभाकर (पृष्ठ 228)
- संपादक : महालचंद बयेद
- रचनाकार : घनश्याम शुक्ल
- प्रकाशन : ओसवाल प्रेस कलकत्ता
- संस्करण : 1937
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