चमचम चाँदनी की चमक चमकि रही
chamcham chandni ki chamak chamaki rahi
चमचम चाँदनी की चमक चमकि रही,
राखी है उतारि करि चंद्रमा चरख तें।
अंबर-अवनि-अंबु-आलय-विटप-गिरि,
एक ही से पेखे, परैं बनैं न परख तें।
‘ग्वाल’ कवि कहै दसों दिसा ह्वै गईं सफ़ेद,
खेद को रह्यो न भेद, फूली है हरख तें।
लीपी अबरख तें, कि टीपी पुंज पारद तें,
कैधों दुति दीपीं चारु चाँदी के बरख तें॥
- पुस्तक : रसरंग (पृष्ठ 153)
- संपादक : रामानंद शर्मा
- रचनाकार : ग्वाल
- प्रकाशन : रामपुर रज़ा लाइब्रेरी
- संस्करण : 2006
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