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चंद सौ बदन, चंद्रिका सी चारु सेत सारी

chand sau badan, chandrika si charu set sari

कवींद्र (उदयनाथ)

कवींद्र (उदयनाथ)

चंद सौ बदन, चंद्रिका सी चारु सेत सारी

कवींद्र (उदयनाथ)

और अधिककवींद्र (उदयनाथ)

    चंद सौ बदन, चंद्रिका सी चारु सेत सारी,

    तैसिए गुराई गसी उरज उतंग की।

    हेरि के हिए कौ हार हारिनी हरिन-नैनी,

    हेरै हिए हरषै सखी त्यौं सैन संग की॥

    भनत कविंद सोहै वासक नबेली नारि,

    बाढ़ी चित चाह, जाकैं आगम उमंग की।

    जगर-मगर बैठी सेज पै नगर-बाल,

    आली लाल मोहिवे को बाला ज्यों अनंग की॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : रीति शृंगार (पृष्ठ 144)
    • संपादक : डा० नगेंद्र
    • प्रकाशन : साहित्य-सदन
    • संस्करण : 1963

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