अधखुली कंचुकी उरोज अध-आधे खुले
adhakhuli kanchuki uroj adh aadhe khule
अधखुली कंचुकी उरोज अध-आधे खुले,
अधखुले वेष नख-रेखन के झलकैं।
कहै ‘पद्माकर’ नबीन अधनीबी खुली,
अधखुले छहरि छरा के छोर छलकैं॥
भोर जगि प्यारी अध-ऊरध इतै की ओर,
भाखी झिखि झिरकि उचारि अध-पलकैं।
आँखें अधखुलीं, अधखुली खिरकी है खुली,
अधखुले आनन पै अधखुली अलकैं॥
- पुस्तक : पद्मावत पंचामृत (पृष्ठ 183)
- संपादक : विश्वनाथप्रसाद मिश्र
- रचनाकार : पद्माकर
- प्रकाशन : श्री रामरत्न पुस्तक भवन, काशी
- संस्करण : 1992
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