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तीर पर तरनि-तनूजा के तमाल-तरे

teer par tarni tanuja ke tamal tare

पद्माकर

पद्माकर

तीर पर तरनि-तनूजा के तमाल-तरे

पद्माकर

तीर पर तरनि-तनूजा के तमाल-तरे,

तीज की तयारी ताकि आयी तकियान मैं।

कहै ‘पद्माकर’ सो उमंगि उमंग उठी,

मेहंदी सुरंग की तरंग तखियान मैं॥

प्रेम-रंग-बोरी गोरी नवल किसोरी तहाँ,

झूलति हिंडोरे यों सुहाई सखियान मैं।

काम झूलै उर मैं उरोजन मैं दाम झूलै,

स्याम झूलै प्यारी की अन्यारी अँखियान मैं॥

यमुना नदी के किनारे पर तमाल के पेड़ों के नीचे छोटे उपवनों में आज मैं तीज-त्यौहार की तैयारी देखकर आई हूँ। पद्माकर कवि वर्णन करते हैं कि वह गोपी पुनः कहने लगी कि वहाँ पर सुंदर-सुंदर रंग की मेंहदी की तरंगें हृदयों की उमंगें उठ रही हैं। अपनी सखियों के साथ हिंडोले पर झूलती हुई वह गोरी तथा नवल किशोरी राधा प्रेम के रंग में डूबी हुई है। उसके हृदय में तो कामदेव झूल रहा है और स्तनों पर सुंदर माला झूल रही है तथा उसकी सुंदर प्रेम-भरी आँखों में श्रीकृष्ण झूल रहे हैं।

स्रोत :
  • पुस्तक : पद्मावत पंचामृत (पृष्ठ 276)
  • संपादक : विश्वनाथप्रसाद मिश्र
  • रचनाकार : पद्माकर
  • प्रकाशन : श्री रामरत्न पुस्तक भवन, काशी
  • संस्करण : 1992

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