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युद्ध

yudh

श्रीविलास सिंह

और अधिकश्रीविलास सिंह

    जब भी तुम मौन रहोगे

    अन्याय के प्रतिकार में,

    अपनी आत्मचेतना के विरुद्ध रुक जाओगे

    उसे राजसत्ता के पायों से बाँधकर।

    होगे तुम उपहास के पात्र मात्र।

    महारथी

    जब जब तुम होगे

    अन्याय के साथ,

    अपनी वैभवपूर्ण वीरता के भग्नावशेषों पर खड़े

    जब तुम लड़ रहे होगे अंतिम निर्णायक युद्ध

    पाओगे स्वयं को अकेला ही

    तुम्हारा सारथी तक

    होगा तुम्हारे विरुद्ध।

    अनाचार का साथ देते खोखले हो चुके

    तुम्हारे बाज़ुओं का समस्त बल

    अपर्याप्त होगा

    निकाल पाने को तुम्हारे रथ के पहिए

    दुर्भाग्य की कीचड़ से।

    अब क्या शोक की पार्थ ने बींध डाली

    तुम्हारी चौड़ी छाती

    तुम्हारे निहत्था रहते

    वासुदेव की उपस्थिति में।

    यह तो प्रतिफल था

    अन्याय के साथ का,

    सत्य के प्रतिरोध का।

    मित्र,

    समय कर देता है

    सारे हिसाब बराबर।

    युद्ध धर्म तो है

    किंतु तभी जब तुम्हारी प्रत्यंचा चढ़े

    सत्य के पक्ष में

    अन्याय के प्रतिकार में।

    पराजय व्यक्ति का अंत भले हो

    विचार का अंत नहीं।

    और विजय युद्ध का प्राप्य नहीं

    परिणाम भले हो।

    याद रखो

    जीवन का उत्सर्ग युद्ध नहीं

    मूल्यों की पुनर्स्थापना का

    यज्ञ है।

    स्रोत :
    • रचनाकार : श्रीविलास सिंह
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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