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यह लखनऊ है—दो

ye lakhanuu hai—do

कौशल किशोर

कौशल किशोर

यह लखनऊ है—दो

कौशल किशोर

और अधिककौशल किशोर

    यह लखनऊ है

    मुस्कुराइए, आप लखनऊ में हैं

    फटी-फटी विस्फारित हैं

    आपकी आँखें

    कहीं यह कोई भ्रम-जाल

    या रामदेव का हास्य योग तो नहीं

    मुस्कुराने की कोई वाजिब वजह तो हो

    खामखा मुस्कुराते रहे

    तो पागल भी क़रार दिए जा सकते हैं

    कोलकाता, दिल्ली, हैदराबाद, पटना...

    इनसे अलग

    क्या ख़ासियत रखता है यह शहर

    कि इससे रू-ब-रू हों

    पेट में पड़ जाए बल

    और आप मुस्कुरा उठे

    जानता हूँ जनाब!

    फ़िलवक्त आप शहर-ए-लखनऊ में हैं

    आपको बहुत पसंद है चिकन कारीगरी

    यहाँ की ख़ूबसूरत अदाकारी

    मनमोहक लोगों का अंदाज़

    पहले आप, पहले आप

    क्या अदाएं हैं इनकी

    बिल्कुल नवाबों की

    रिक्शेवाले हों या बग्गी वाले

    बड़ी मीठी है इनकी ज़बान

    इसीलिए तो आप इन सब के कायल हैं

    तनाव और उदासी

    जो चिपकी थी आपके साथ

    इसके भव्य दरवाज़े से दाख़िल होते ही

    ग़ायब हो गई इस कदर

    ऐसे छू-मंतर

    जैसे गर्म तवे पर पड़ी जल-बूँदें

    जनाब! इतहास के पन्ने फड़फड़ा रहे है

    और इसमें आप कहाँ खो गए?

    पर यह क्या?

    बड़े ज़ोर की ठोकर लगी

    और अपकी तंद्रा भंग

    आप तो पत्थर की तरह लुढकने लगे

    इस ढ़लवाँ शहर में लुढकते-लुढकते

    आप कहाँ पहुँचे हैं

    यह कंक्रीट का कोई जंगल नहीं हैं

    लखनऊ है लखनऊ

    लखनऊ में लखनऊ

    इसके वक्षस्थल पर चल रही है

    तरक़्क़ी की रेल

    सवार है जिस पर मॉल, मल्टीप्लेक्स

    ऊँची इमारतें, चमचमाती सड़कें

    पोर-पोर में पसरता बाज़ार

    हवा में तैरती

    धरती का कलेजा फाड़

    चल रही है रेल

    तबाह होती बस्तियाँ, उजड़ते खेत

    बजबजाते नाले-नालियाँ

    व्यस्त शहर, भागते लोग

    सड़क जाम

    बेरोज़गारों की भीड़

    सफ़ाई, पानी और बिजली के लिए

    त्राहि-त्राहि

    चारो तरफ़ हाहाकार

    रोज़ ही लोग नारे लगाते घरों से निकलते हैं

    पुतला फूँकते हैं

    और करते हैं सरकार का दाह संस्कार

    जनाब! चौंकिए नहीं

    हाँफ़ते, भागते आप जहाँ पहुँचे है

    यह लखनऊ ही है

    जितना यह फैल रहा

    उतना ही सिकुड़ता जा रहा

    ग़ायब हो रही है उसकी मुसकान

    बहती है गोमती इसके बीचो-बीच

    पतली, पर गहरी

    समेटे खदबदाता इतिहास

    शहर बड़ा हो

    पर वह इतना बड़ा हो जाए

    जैसे पेड़ खजूर

    कि गोमती छोटी पड़ जाए

    मछलियों को पानी मिले

    वे तड़पने लगे

    वे मरने लगे

    पानी-पानी रहे

    बचा रहे हमारा पानी

    वह ज़हर बने

    बची रहे जीवन-रेखा

    और बची रहें मुस्कुराहटें

    उनकी जगहें और वजहें

    हाँ, हाँ जनाब!

    यह लखनऊ है

    मुस्कुराइए, आप लखनऊ में है

    और जब आप यहाँ से जाए

    तो इस संदेश के साथ जाएँ

    गोमती को बचाना, अपने पानी को बचाना है

    अपने शहर को बचाना, इस दुनिया को बचाना है।

    स्रोत :
    • रचनाकार : कौशल किशोर
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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