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यादों की करवट

yadon ki karvat

द्वारिका उनियाल

द्वारिका उनियाल

यादों की करवट

द्वारिका उनियाल

और अधिकद्वारिका उनियाल

    जलते अलावों में जो अँगार हैं

    वो रंग बदलते रहते हैं

    जब तक जलते हैं

    उनमे जान रहती है

    जाने किसकी रूह भी

    बुझी हुई राखों पर

    कोई नज़्में नहीं लिखता

    अनजाने शहरों के पोस्ट बॉक्स में

    कुछ ख़त लौट के आते हैं

    एक कोने में पटक दिए जाते हैं फिर

    उनसे कोई उनका पता नहीं पूछता

    शाँतिपाड़ा के पुकुरों में

    नवमी के बाद डूब जाती है दुर्गा

    दशमी के रावण जलाने में हर कोई व्यस्त है

    अब वो मूर्ति कोई देवी नहीं

    सिर्फ़ घुलती-पिघलती मिट्टी है

    गाँव में पुरखों का सप्ताह है

    शाम को मन्नाण लगेगा

    चीड़ के चूल्हे में पकती आटे की खीर में

    एक रोज़ नमक गिर गया था

    आँखों से निकलते धुएँ में

    अब शीशे भी नहीं दिखते

    पहाड़ों के उस पार संदेसा भेजा था

    शहरों में मोटरें तेज दौड़ती हैं

    दिल नहीं

    वो जम गए हैं

    सर्दी के शहद की तरह

    टूटे मर्तबान से निकाल कर चख़ लो

    रात की औंस में ठिठुरकर

    उस लिहाफ़ को ओढ़

    मुझसे चिपक गई है वो

    यादों ने करवट जो बदली है

    स्रोत :
    • रचनाकार : द्वारिका उनियाल
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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