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याद रहे ओ जाँ-निसार

yaad rahe o jaan nisar

दिव्या श्री

दिव्या श्री

याद रहे ओ जाँ-निसार

दिव्या श्री

और अधिकदिव्या श्री

    लिख सकती हूँ अपनी कविता में

    वे सारे दर्द जो तुमने दिए थे

    गुलाब के फूल से लेकर उसके काँटों तक का

    बखान कर सकती हूँ मैं

    प्रेम में ही नहीं

    तकलीफ़ में भी कविताएँ साथ देती हैं

    गर पूछो मुझसे सबसे महफ़ूज़ जगह

    तो कमरे का अँधेरा होगा वह

    होगी रोशनी, डर होगा उसे खोने का

    जैसे सबसे माक़ूल होता है एकतरफ़ा प्रेम

    कि प्रेम की हिफ़ाज़त ख़ुद ख़ुदा ने भी नहीं की

    मैं तो शहज़ादी ठहरी एक ग़रीब बाप की

    हमारे बीच केवल दुआ-सलाम भर के रिश्ते नहीं थे

    परवरदिगार, मेरे मौला

    इल्तिज़ा है मेरी

    मेरे महबूब को उसकी मुहब्बत क़ुबूल हो

    पर याद रहे जाँ-निसार

    आजिज़ी में भी दरख़्त अपने पत्ते बदलते हैं जड़ें नहीं।

    स्रोत :
    • रचनाकार : दिव्या श्री
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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