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भारत के कवियों के प्रति

bharat ke kaviyon ke prati

इराकली अबाशीद्ज़े

इराकली अबाशीद्ज़े

भारत के कवियों के प्रति

इराकली अबाशीद्ज़े

और अधिकइराकली अबाशीद्ज़े

    अपनी इच्छा—

    युद्धों से ऊबी धरती पर

    कोई नहीं दु:खी हो

    अपनी इच्छा—

    उस मुशायरी दुनिया में जाने की

    जहाँ उमंगों से अनुप्राणित

    शायर गायक

    गाते गीत बिताते रातें

    जिनकी गूँजें

    उठकर ताजमहल से सारी दुनिया घेरें

    और साथ में झरे चाँदनी

    प्राण फूँकते धरती के कवि

    जहाँ शायरी के दंगल में

    बुरा मानता जहाँ कोई

    प्रतिभा अपनी दिखलाने में

    काकेशस का बुरका

    उस धरती पर हम फैलाएँ

    भारतवासी और गोरखा

    दोनों के हित

    गीत हमारे गूँजें

    स्नेह-सिक्त प्राणों से निकले

    अपने गीत दूर तक फैलें

    महमूद और सरदार चले आएँ

    दोनों ही काव्य-युद्ध में

    हम विरोध यदि करें परस्पर

    वहाँ रात में

    घबराने की बात नहीं कोई पैदा हो

    मेरे दोस्त फैज़ वहाँ तुम भी जाओ

    औ' मुशायरे में हिस्सा लो

    झरती मंद चाँदनी

    जब छिपने को होगी

    भाव-भरे शब्दों में मुखरित होगी

    नव भारत की गरिमा

    भारत की सुंदरियों के सम्मोहन पर

    हम गीत सुनाएँ

    और कल्पना अपनी

    उनकी जा छूए मख़मली भुजाएँ

    मित्र-भाव की ज्योति जलाएँ

    दिल्ली से त्बिलीसी तलक

    हम इन प्राणों में

    हिंदी की कविताएँ

    और खार्तवेली की

    मिलें एक बन जाएँ

    अपनी इच्छा—

    युद्धों से ऊबी धरती पर

    कोई नहीं दु:खी हो

    अपनी इच्छा—

    उस मुशायरी दुनिया में जाने की।

    स्रोत :
    • पुस्तक : एक सौ एक सोवियत कविताएँ (पृष्ठ 170)
    • रचनाकार : इराकली अबाशीद्ज़े
    • प्रकाशन : नेशनल पब्लिशिंग हाउस, दिल्ली
    • संस्करण : 1975

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