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वह कोरोना यह कोरोना

wo korona ye korona

अभिज्ञात

अभिज्ञात

वह कोरोना यह कोरोना

अभिज्ञात

और अधिकअभिज्ञात

    कई बार वह हमसे हमारी सूँघने की शक्ति छीन लेता है

    इस तरह करता है स्मृतिहीन

    क्योंकि हमारी स्मृतियों का सबसे अधिक हिस्सा

    हममें व्यापती गंध का होता है

    वह हमें हमारे अपनों के साथ

    तब तक ही रहने को राज़ी और विवश करता है

    जब तब वे स्वस्थ हों

    बीमारी के लक्षण दिखते ही कर देता है हमसे दूर

    अलग-थलग और लगभग त्याज्य

    जब तक कि वे स्वस्थ हो जाएँ

    जबकि उन्हें अपने आस-पास अपनों के होने की आश्वस्ति की सबसे ज़्यादा ज़रूरत होती है

    और होती है ख़्वाहिश अपनों के बीच अंतिम साँस लेने की

    वह छीन लेता है यह गुंजाइश

    वह हमें अपनों के गले नहीं मिलने दे रहा

    नहीं मिलाने दे रहा गर्मजोशी से हाथ

    वंचित कर रहा है सांत्वना, शाबाशी और प्यार भरी थपकी वाले सुखद स्पर्श से

    हम किसी के गुलाबी होंठ नहीं छू सकते

    नहीं दे सकते बे ख़ौफ़ किसी आत्मीय को प्यार भरा चुंबन

    किसी की गर्म सांसें हमें डराती हैं

    किसी की हिचकी भी अब हमें खाँसी नज़र आती है

    हम किसी की आँखों को पीछे से अपने हाथों से नहीं कर सकते बंद

    हम अपना ही चेहरा छूने से हैं ख़ौफ़-ज़दा

    दुलारने से डरते हैं हम अपने बच्चे तक को

    जिस शहर-गाँव-कस्बे के कोने-कोने में बसी हैं असंख्य यादें

    अब वहाँ जाने से लगता है भय

    पता नहीं कौन वहाँ आया था और

    पता नहीं किसकी अँगुलियों की कहाँ पड़ी है अदृश्य छाप

    अब नहीं चाहिए नौकरों-चाकरों की सेवाएँ

    नहीं चाहिए किसी से कोई तोहफ़ा

    नहीं चाहिए आस-पास लोगों का मजमा

    नहीं चाहिए सभाओं में भीड़

    अब मुहब्बत में क़रीबी नहीं दूरी चाहिए

    अब बाज़ार में रौनक़ नहीं सन्नाटा चाहिए

    अब शोर डराता है

    चहल-पहल दिल दहलाती है

    वह एकांत जो अरसे से अब तक हमें खा रहा था

    वह अकेलापन जो हमें सालता जा रहा था

    वह सामाजिक दूरियाँ, जिसे हम पाटने में जुटे थे

    वह अब व्यर्थताबोध में परिणत हो गई है

    नई सजधज और गरिमा के साथ

    यह वायरस पहले जैविक नहीं था जो

    नए दौर में हमारे समाज में फैल रहा था

    यह वायरस हमारे व्यवहार में पहले टहल रहा था

    यह हमारे संबंधों को पहले ही खाता जा रहा था

    अपनी सुख-सुविधाओं और मतलबों की सुरक्षित दुनिया में

    किसी किसी वजह का हवाला दिए दुबक जाते थे

    और जैविक मौत से पहले ही

    हम

    ठंडे रिश्तों से मर जाते थे।

    स्रोत :
    • रचनाकार : अभिज्ञात
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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