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विस्मय तरबूज की तरह

wismay tarbuj ki tarah

आलोकधन्वा

आलोकधन्वा

विस्मय तरबूज की तरह

आलोकधन्वा

और अधिकआलोकधन्वा

    तब वह ज़्यादा बड़ा दिखाई देने लगा

    जब मैं उसके किनारों से वापस आया

    वे स्त्रियाँ अब अधिक दिखाई देती हैं

    जिन्होंने बचपन में मुझे चूमा

    वे जानवर

    जो सुदूर धूप में मेरे साथ खेलते थे

    और उन्हें इंतज़ार करना नहीं आता था

    और वे पहले छाते

    बादल जिनसे बहुत क़रीब थे

    समुद्र मुझे ले चला उस दुपहर में

    जब पुकारना भी नहीं आता था

    जब रोना ही पुकारना था

    जहाँ विस्मय

    तरबूज़ की तरह

    जितना हरा उतना ही लाल।

    स्रोत :
    • पुस्तक : दुनिया रोज़ बनती है (पृष्ठ 76)
    • रचनाकार : आलोकधन्वा
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
    • संस्करण : 2015

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