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वीरगति

wiragti

इकबाल रामूवालिया

और अधिकइकबाल रामूवालिया

    वीरगति की चरम सीमा दोस्तो

    कि वे यकायक आते हैं

    सब्ज़ी मंडी के अहाते में

    और मशीनगनें दाग देते हैं

    रेहड़ियों पर ऊँघती-सुस्ताती

    मखियाली मक्खियों पर

    या फिर

    केंचुओं के पीछे भागते

    देसी क़िस्म की पिस्तौल छोड़कर

    जाते-जाते

    फ़ायर करते हैं

    अँगूरों के गुच्छों में

    पूरा शहर एक घाव हो जाता है

    जिसके ख़ून से

    दूसरी सुबह

    अख़बारी सुर्ख़ियाँ उभरती हैं

    फिर जाने

    किसे भौंकने लगती हैं

    शहर की श्लील-अश्लील सड़कें

    हवा को यूँ दूषित करती हैं

    त्रिशूलमय, चौराहों की कानाफूसी

    दुकानों के पिल्ले तक भी

    हलका जाते, पागल हो जाते हैं

    वीरगति का चरम यही है

    दोस्तों की मोटरों पर धमकते हैं

    त्योरियों में पंजाब की सरहद उभारते

    जब गोल-मटोल टिकटों की तहें

    वे रिवाल्वरों से खोलते हैं

    तो ड्राइवरों के सामने लटकते चित्रों में

    नीला घोड़ा भी पहुँच जाता है

    शाह-सवार की कलगी को बचाते हुए

    या फिर बाबा नानक के हाथ से भी

    ख़ून बहने लगता है

    जिसके इर्द-गिर्द वे

    पंजाब का फटा नक़्शा

    लपेट देते हैं

    वीरगति का यह चरम है दोस्तो

    वे हुजूम बनकर निकलते हैं

    कि दुश्मन के क़त्ल के बदले को जो

    कभी राम-गाय की तस्वीर बनकर

    उनकी झोपड़ियों में

    गोबर बिखेरती रही

    और कभी पंजे का निशान बनकर

    उनकी तहों में से

    भविष्य चुराती रही

    बहुत बहादुर हैं वे

    द्रोपदी की साड़ी के उपासक

    बेज़ुबान गुड़ियों के

    पटोले उतारकर

    वे चीथड़ों का रेप करते हैं

    शर्मसार सुंदरा की बुज़ुर्गी के सामने

    जहाँ उनके कृष्ण की मूर्ति

    कभी महाभारत के भूगोल में

    उलझ जाती है

    तो कभी

    श्लोकों के अर्थ भूल जाती है

    ख़ूब वीर बहादुर हैं

    सफ़दरजंग की दीवारों के गिर्द

    घूमते जादूगर

    कि अपनी कश्तियाँ

    पेट्रोल की ठंडी पीपियों में ठेलकर

    लाल क़िले में गरमा रहे मुजरे की

    प्रथम पंक्ति में जा उतरते हैं

    अथवा जीवित मनुष्यों को

    सुलगते-जलते टायरों में लपेटकर

    गंदी बस्तियों की ओर छोड़ दें

    ताकि छपने से पहले ही

    भ्रम हो जाए विरोधी पार्टियों के दिल तोड़ते नारे।

    स्रोत :
    • पुस्तक : बीसवीं सदी का पंजाबी काव्य (पृष्ठ 305)
    • संपादक : सुतिंदर सिंह नूर
    • रचनाकार : कवि के साथ अनुवादक फूलचंद मानव, योगेश्वर कौर
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2014

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