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बीतते हुए जाड़े की वह हवा

bitte hue jaDe ki wo hawa

मनप्रसाद सुब्बा

मनप्रसाद सुब्बा

बीतते हुए जाड़े की वह हवा

मनप्रसाद सुब्बा

और अधिकमनप्रसाद सुब्बा

    क्षितिज के उस पार से समय द्वारा भेजी गई

    अग्रिम सूचना बनकर

    हवा आई है मेरी बस्ती में।

    बादल की फाँक-फाँक से

    टप-टप गिरती हुई धूप

    से नहाकर

    मैं देखता हूँ—

    महीनों से जाड़े से ठिठुरते हुए पेड़

    और बाँस की झाड़ियाँ

    आज ही जगकर धूल झाड़ रहे हैं।

    जाड़े से समझौता कर मौन बैठे पेड़ों के लिए

    एक झकझोर और

    एक साहस बनकर आई है ये हवा

    (आक्रमण के लिए आने वाली ठंडी लहर नहीं है यह।)

    इस हवा के स्पर्श से

    रोमांचित हुए हैं पेड़ आज

    इसकी साँस से

    उर्वरक मिट्टी की ख़ुशबू रही है

    कबूतर भी

    काफ़ी उत्तेजित हो उड़ रहे हैं इस हवा के संग ही

    अब एक-दो दिन में ही

    इस हवा का पीछा करते हुए अबाबीलें पहुँचेंगी।

    स्रोत :
    • पुस्तक : ऋतु कैनवास पर रेखाएँ (पृष्ठ 95)
    • रचनाकार : मनप्रसाद सुब्बा
    • प्रकाशन : नीरज बुक सेंटर
    • संस्करण : 2013

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