मायके गई बीवी के लिए

mayke gai biwi ke liye

जावेद आलम ख़ान

जावेद आलम ख़ान

मायके गई बीवी के लिए

जावेद आलम ख़ान

और अधिकजावेद आलम ख़ान

    तुम्हारे होने पर कभी ध्यान ही नहीं गया

    उस संगीत पर जो किचेन में गैस पर रखी

    पतीली में खदबदाता था

    मैंने छत के गमलों में लगे फूलों की महक तक

    समेटे रखा अपनी सूँघ का दायरा

    और नाक़द्री की उस ख़ुशबू की

    जो खाना बनते वक़्त पतीली से निकलती है

    स्कूल से लेट होने पर आए तुम्हारे फ़ोन पर

    झल्लाते हुए तुम्हारी फ़िक्र को अनदेखा किया

    रात में चाय की चुस्कियों के साथ लिखते हुए

    तुमसे कभी नहीं कहा

    इन कविताओं के निर्माण में तुम्हारी नींद भी शामिल है

    ओह मैंने तुमसे बहुत कुछ नहीं कहा

    शायद प्यार जताने का हुनर मुझे आया ही नहीं

    मुझे कवियों की तरह

    आपबीती को जगबीती बनाने का हुनर भी नहीं आया

    मेरी भाषा कही और अनकही के बीच

    बिन माँझी नाव बनी हिचकोले खाती रही

    तुम्हें वेलेंटाइन पर कभी गुलाब नहीं दिया

    एनीवर्सरी पर पहाड़ ले गया

    मगर मुँह से मुबारकबाद नहीं बोला गया

    रोज़ सवेरे तुम्हें स्कूल छोड़ने की ड्यूटी

    मोटर साइकिल के साथ पूरी शिद्दत से निभाता रहा

    पर कहा नहीं गया मुझे तुम्हारी फ़िक्र है

    शायद तुम समझ सको कि असल में

    अड़ियल और नाशुक्रे आदमी का प्यार ऐसा ही होता है

    मैं प्रेम को ज़बान पर लाने का क़ायल नहीं रहा

    इसीलिए मेरा प्रेम तुम्हारी अनुपस्थिति में

    हमेशा आँखों से पिघलता रहा

    और तुम्हारे सामने कभी कभी होंठों से

    जैसे उस दिन तुम्हारे माथे पर अंकित हुआ

    जब पहली बेटी होने के वक़्त स्ट्रेचर पर लेटे हुए

    ऑपरेशन थिएटर के लिए तुम्हें विदा कर रहा था

    और नमाज़ बाद दुआ के लिए उठे हाथों में

    टप-टप गिरते आँसुओं की शक्ल में फूट पड़ा

    कहते हैं प्रेम कलाओं से व्यक्त होता है

    आज इस प्रेम-दिवस पर पूरी ईमानदारी से कहता हूँ

    मुझसे अपने प्रेम की मूर्ति बनाई जाएगी तस्वीर

    मैं प्रेम को शब्दों का जामा नहीं पहना सकूँगा

    मैं काम-याचना को प्रणय-निवेदन

    लिखने वाले कवियों से पूछता हूँ

    क्या प्रेम की कोई व्यक्त भाषा भी होती है?

    स्रोत :
    • रचनाकार : जावेद आलम ख़ान
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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