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भीत हिरणी

bheet hirni

सुस्मिता पाठक

अन्य

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सुस्मिता पाठक

भीत हिरणी

सुस्मिता पाठक

और अधिकसुस्मिता पाठक

    साओनक झुलुआ टूटैत छैक

    माघक सिहकी बीतैत छैक

    एहिना बीतैत छैक फागुनक मातल हवा

    चैतक चैतावर

    वैशाखक दुपहरिया

    बरखक खंड-खंड एहिना घूमैत छैक

    मुदा एहि सबसँ फराक

    एकटा निसभेर अन्हरियामे

    जीबैत छैक भीत हिरणी

    काँट भरल बाड़ामे मूड़ी नुकौने

    कोखिसँ बहरायल छौनाकेँ पेट तऽर दबौने

    चारूकात पसरल इजोरिया होइ

    कि कोनो पाबनि-तिहार

    मुसकाइत होइ वसन्त

    ओछायल हो सुखक तरंग—एहि सबसँ निर्लिप्त

    उजरा झक्क नूआ देहमे लपेटने

    आँचर त’र काँच दीपकेँ जरौने

    आँगनक तुलसीचौड़ा नीपैत

    नोर खसबैत

    उदासीक एकटा रंगहीन चित्र

    देखबामे लगैत छैक केहन विचित्र

    कतहु होइत अछि कोनो जग-जाजन

    कन्यादान वा दुरागमन

    सब बाट बन्न, कतय हो आगमन

    सब ठाम भेटैत छैक ओकरा

    अगबे साँपे-साँप

    विधिक विडम्बना देखि जाइत अछि काँपि

    गाम-घर-राह-बाट देखि सब हँसैत अछि

    देहयष्टि देखि ललचैत अछि

    एहि सबसँ बचबाक प्रयासोमे घेराइत छैक

    आर क्यो नहि मिथिलाक विधवा थिक।

    स्रोत :
    • पुस्तक : परिचिति (पृष्ठ 37)
    • रचनाकार : सुस्मिता पाठक
    • प्रकाशन : किसुन संकल्प लोक
    • संस्करण : 1997

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