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चैत की चौपही

chait ki chauphi

दिनेश कुमार शुक्ल

दिनेश कुमार शुक्ल

चैत की चौपही

दिनेश कुमार शुक्ल

और अधिकदिनेश कुमार शुक्ल

    दिन नेवर्तों के महीना चैत का है

    पड़ चले फीके मगर रह-रह दहकते हैं अभी तक रंग होली के

    हवा के तेवर ज़रा बदले हुए हैं और गाढ़ी हो चली है धूप

    फ़सल के पकने का मौसम गया पर लाँक अब तक हरी है

    इस बार भुस तो बहुत होगा किंतु दाने कम पड़ेंगे बालियों में

    मगर कोई क्या करे!

    ये दिन नेवर्तों के महीना चैत का है

    चौपही में सज-सँवर कर स्वाँग निकलेंगे,

    जग रही है रूप-रूपक की वो दिल-अंगेज़ दुनिया—

    फाँदकर संसार उसके पार का संसार रचती

    बुलबुले में रंग भरती

    किसी फक्कड़ शरारत की हरारत माहौल में है

    एक पल को पलक खोलो ध्यान गहराओ तो पाओगे

    यहीं इस अधगिरी चौपाल में कुछ लोग बैठे सज रहे होंगे—

    भेस धरकर कोई डाइन का पहनकर रात काली

    हाथ में खप्पर मूसल लेके गलियों में छमाछम दौड़ता

    संसार को ललकारता, आतंक को मुँह बिराता-सा रहा होगा,

    कोई पागल बन के ठर्रे की महक में बलबलाता

    पाँव में दस हाथ के ज़ंज़ीर बाँध घूमता होगा तुड़ाकर,

    कोई जोकर कोई भालू औ’ कोई अरधंग बनकर

    कोई गालों में चुभोकर साँग लोहे की

    हवा पर चल रहा होगा दुखों से बहुत ऊपर...

    चौपही में देव-दानव-ठग-अधम-सज्जन सभी के रूप होंगे

    भाँजते अपनी बनैठी चल रहे होंगे कई इतिहास

    और करतब पटेबाज़ी के दिखाता तर्क भी होगा

    मौत के काँधे पे धर के हाथ हँसती ज़िंदगी होगी

    सार परतों में हवा की तरसा-मरसा बज रहा होगा

    कान के पर्दों में दँहिकी गमकती होगी

    और पानी के गले में गूँजता होगा कुआँ

    उधर ऊपर चंद्रमा के पास खिड़की खोलकर

    अर्धपरिचित एक चेहरा झाँकता होगा,

    दूर जाती और गहरे डूबती-सी मुस्कुराहट की कठिन आभा

    वहीं पर खो रही होगी,

    और झालर की तरह उड़ती हुई चिड़ियाँ

    गगन की अस्त होती नीलिमा में लहर भरती जा रही होंगी—

    तब गगन के काँपते जल में वो चेहरा डूब जाएगा!

    चौपही का ढोल धरती की तरह प्रतिध्वनित होता

    रात भर बजता रहेगा और तारों से झरेगी धूल,

    तनी गेहूँ की कँटीली बालियों की झील पर तब चंद्रमा-सी एक थाली

    सरकती दस कोस तक हँसती-फिसलती चली जाएगी

    भेड़िए उस फ़सल में जो छिपे हैं अब डर रहे होंगे!

    स्रोत :
    • पुस्तक : एक पेड़ छतनार (पृष्ठ 7)
    • रचनाकार : दिनेश कुमार शुक्ल
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
    • संस्करण : 2017

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