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वजूद को लेकर संशय

wajud ko lekar sanshay

बहादुर पटेल

बहादुर पटेल

वजूद को लेकर संशय

बहादुर पटेल

और अधिकबहादुर पटेल

    वजूद को लेकर संशय है

    उभर रहा है जीवन प्रतिबिंब पर

    रही है अनंत से

    समूची मानवता की गंध

    टकरा रही भीतर अमूर्त हिस्से से

    परिकल्पना हमारे दिमाग़ से उतर कर

    सीधे हाथों में गई है

    जो अब अर्थवयस्था का हिस्सा बनते हुए

    छूट रही है हाथों से

    एक लय लगातार पिघलते शीशे की तरह

    उतर रही है

    और हम सुनें उसके पीछे की आवाज़

    इस तरह की इच्छाएँ नहीं हैं।

    कई पदार्थ हमारे भीतर ऐसे दाख़िल हो रहे हैं

    जिनके लिए हमारी तत्परता

    वीभत्सता से भी आगे पहुँच रही है

    जिसमें छुपा जीवन

    एक बेहद ख़राब मौत पैदा करता है

    जीवन की गंध फैलती है

    सन्नाटे में उतरती हुई।

    स्रोत :
    • पुस्तक : बूँदों के बीच प्यास (पृष्ठ 70)
    • रचनाकार : बहादुर पटेल
    • प्रकाशन : अंतिका प्रकाशन
    • संस्करण : 2010

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