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विफल प्रतीक्षा

viphal pratiksha

अनुवाद : चक्रेश्वर भट्टाचार्य

महेंद्र बरा

महेंद्र बरा

विफल प्रतीक्षा

महेंद्र बरा

और अधिकमहेंद्र बरा

    पाँच बज गए। तो भी तुम नहीं आई।

    शायद इतनी देर तक दर्पण में अपना चेहरा देखकर

    तुम अपने रूप पर ही मुग्ध हो रही हो। तुम और मै 'मफलाग' देखेंगे!

    'नंथमाई' और 'रिलबांग' की गली-गली में घूमेंगे।

    समय नहीं होगा क्या? बहुत देर हुई। जल्दी जाओ!

    किसी की नरम पद-ध्वनि कान में आती है, यहाँ।

    तुम आई हो? मत छिपो! नज़दीक बैठ जाओ! कब से

    ताकते-ताकते मेरी दोनों आँखें थक गईं

    तुम नहीं आई। कोई चलिहा आया। विफल वेदना से मन भर जाता है।

    अब संध्या प्रायः उतर रही है। अब भी उतरी नहीं।

    तुम क्या नहीं आओगी?

    अवसन्न मुंशियों का दल संधानी आँखों का पाखि खोल देता है,

    खंड-खंड बातों के पहलू मेघ की कुंडली बनाते हैं।

    चुरुट का धुआ झूलता रहता है। शायद अब चेरापूँजी में

    मौसम की बारिश गिर रही है। आर लाबान के पथ-पथ में

    पाईन की शाखा-शाखा में आराम लेती हुई धूप लौट जाती है।

    संध्या के कोमल स्पर्श। खासी षोडशी का

    ‘उखपिंग पांसिनियात' का तूफ़ान शांत हो गया।

    छंद मधुर चढ़ाई-उतराई नन्क्रेमी पग और नहीं है।

    तो भी तुम नहीं आई। छह बजकर पंद्रह मिनट हुए।

    शायद तुम अभिमान कर रही हो। कल ही क्यों नहीं बताया।

    शिलांग की यह सुंदर संध्या कल ही चली जाएगी;

    और कभी वापस नहीं आने वाली वह संध्या चली जाएगी।

    बरुआ! आइए ज़रा लाईटमुखा की तरफ़...

    बंधु, तुम्हारा अनुरोध करुणा की हँसी से भरा हुआ है।

    मुझसे नहीं होगा। अब भी और ज़रा इंतज़ार करना पड़ेगा।

    शायद वह भी सकती। शायद वह सात बजे

    आने वाली थी। मैं भूल गया हूँ।

    लजवती लता, अँधेरा उतर रहा है। आओ!

    तुम आओगी क्या? शायद आओगी। तुम ज़रूर आओगी!

    मेखला की पट्टी में काँटेदार पौधा...

    रेस्तराँ उज्ज्वल हो गया निआन की नील रोशनी में।

    तुम नहीं आई। संध्या आई। नील संध्या।

    महानगरी रात की मेहमान,

    कुहेलिका की तरह रहस्यमय अकारण तुम्हारे नहीं आने का कारण।

    मेरा मन भारी नील माफलांग की नील संध्या की तरह है।

    शायद तुम तारीख भूल गई।

    कल आओगी?

    तुम आओगी! तुम्हारे लिए लाबान के रास्ते में

    एक क्रिसेंथिमम, और एक छोटी-सी 'खुबलाई'।

    स्रोत :
    • पुस्तक : भारतीय कविता 1954-55 (पृष्ठ 26)
    • रचनाकार : महेंद्र बरा
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

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    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

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