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अंचित

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अंचित

और अधिकअंचित

    घर में ही एक दफ़्तर,

    घर में ही एक स्क्रीन जिसकी दूसरी तरफ़ मालिक,

    घर में ही घर के लोगों से कटी हुई जगह,

    जहाँ सबका प्रवेश निषेध है।

    घर के भीतर कम से कम आदमी सुनता था

    अपनी आत्मा की आवाज़

    घर के भीतर सो सकता था एक निश्चिंत नींद

    घर के भीतर क़ैदी नहीं था आदमी

    घर के भीतर कौन बाहर वाला जमा सकता था धौंस?

    घर के भीतर से काम का स्वागत करते लोगों

    अब दुनिया में कोई जगह नहीं बची तुम्हारी अपनी

    कोई समय नहीं बचा काम के समय के अलावा

    काम,

    जिसे हमने बहुत कोशिश कर दूर रखा अपने घर से,

    जिसके तनाव, उससे जनित बेचैनी से

    अपनी निजता, अपने कोने को बचाते रहे

    हर संभव कोशिश कर—

    वह आख़िरकार घर चला आया है।

    जहाँ चिड़िया ने दिए हैं अंडे

    वहीं दबे पाँव बैठा है महानगर।

    स्रोत :
    • रचनाकार : अंचित
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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