एक अप्रत्याशित भेंट
ek aprityashit bhent
हम एक-दूसरे के प्रति बहुत शिष्ट हैं,
हम इसरार करते हैं कि इतने बरसों बाद मिलना प्रीतिकर है।
हमारे शेर दूध पीते हैं।
हमारे बाज़ पैदल घूमते हैं।
हमारी शार्क मछलियाँ पानी में डूब जाती हैं।
हमारे भेड़िए खुले पिंजरे के सामने जँमाई लेते हैं।
हमारे व्याल छुटकारा पा चुके हैं अपने लहरियों से,
बंदर प्रेरणाओं से, मोर अपने पंखों से।
चमगादड़ें बहुत पहले हमारे बालों से उड़ चुकीं।
हम वाक्य के अधबीच चुप हो जाते हैं,
असहाय मुस्कराते हुए।
हमारे मनुष्य
एक-दूसरे से बात नहीं कर सकते।
- पुस्तक : कोई शीर्षक नहीं (पृष्ठ 19)
- रचनाकार : कवयित्री के साथ अनुवादक अशोक वाजपयी और रेनाता चेकाल्स्का
- प्रकाशन : वाणी प्रकाशन
- संस्करण : 2004
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