उतने सीधे तो रास्ते भी नहीं होते
utne sidhe to raste bhi nahin hote
संतोष कुमार चतुर्वेदी
Santosh Kumar Chaturvedi
उतने सीधे तो रास्ते भी नहीं होते
utne sidhe to raste bhi nahin hote
Santosh Kumar Chaturvedi
संतोष कुमार चतुर्वेदी
और अधिकसंतोष कुमार चतुर्वेदी
जितना सीधे दीखते हो तुम
उतनी सीधी-सपाट तो नहीं होती कोई ज़िंदगी भी
क्या जड़ों से होकर गुज़रे हो कभी
वे एड़ी-टेढ़ी होती हुई जुटी रहती हैं
अपने बिरवे अपनी गाँछ को
धरती पर खड़ा रखने के लिए
सीधापन एक भ्रम सरीखा होता है हमेशा
जिसके लिए इंची टेप और साहुल-सूत की ज़रूरत पड़ती है
रास्ते भी घूमते-फिरते ज़िंदगी का एक वितान रचते हैं
जिससे होकर रोज़ ही गुज़रते हैं हम
जितने सीधे दीखते हो तुम
उतने सीधे तो रास्ते भी नहीं होते मित्र
बरगद की ऐंठी हुई घुमठी हुई बरोहें जो लटकती हुई
चल पड़ती हैं पृथिवी से मिलने
साफ़-साफ़ दिखाती हैं आईना
वैसे अपनी यह पृथिवी भी झुकी हुई है अपने अक्ष पर
और इसी की बदौलत किसिम-किसिम के मौसमों से दो-चार हो पाते हैं हम
वरना सीधापन इसे एकरंग बनाने से कभी नहीं चूकता
- रचनाकार : संतोष कुमार चतुर्वेदी
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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