एक
मानो वह रंगीन पक्षियों से भरे बाज़ार से गुज़र कर आई
टोकरियों में मछलियाँ
बोरों में रंगीन मसाले चमकते थे
धूप में रक्त उफनता था और गंध
माल लदे जहाज़
मानो उतरे हो तंग बाज़ार में
सपेरे और लिपटी हुई बारिशें और ताड़
छोटी दुकानों के ऊपर मानो
हरे पत्ते झुकाते नीले आकाश में
जामुनी, पीले और लाल
फूलों वाले लहराते कपड़ों में मानो
उसके भारी अंग थिरकते थे
पत्तों का मुकुट अंगूर-गुच्छे गले में
मानो क़बीले की काली राजकुमारी
वह आई
यौवन की किसी आदिम रस्म के लिए ओझन के पास
मानो ओझन ने नौजवान लड़की से पूछा
‘तेरे हाथ की बनानी है अँगूठी’
और हीरे गिने बुलाबी काग़ज़ पर
हीरों की पारखी वह औरत प्रेमियों के वीर्य से भरी
शानदार
भारी लेकिन मुलायम हाथों से
उसने नाप लिया लड़की की गोरी उँगली का
त्वचा कसी थी और नाख़ूनों के नीचे लाल रसाव चमकता था
दो
रक्त में कथाओं की तरह घुला हुआ
यह तुम्हारा दुःख है
अयस्क-सा।
दानेदार। रेत में त्वचा पर चमकता
धूप में निखरे रक्त-सा चमकता
यह दुःख है या प्रेम
तीखा और पुराना
स्वाद भरा। ज्वरग्रस्त
- पुस्तक : साक्षात्कार 196 (पृष्ठ 46)
- संपादक : ध्रुव शुक्ल
- रचनाकार : जितेंद्र रामप्रकाश
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