बेरोज़गारी : कुछ और कविताएँ
berozagar ha kuch aur kawitayen
एक
उसके पास ज़िंदा रहने का सही तर्क है
इसीलिए
उसकी ज़िंदगी का बेड़ा ग़र्क है।
दो
जिस देश में
नमक
दवा
पानी
और घर
के लिए भी लगता हो ‘कर’
बिना करते हुए कुछ
वहाँ गुज़ारा तो मुश्किल है सचमुच।
तीन
कारणों के अनगिन कोणों से
सन्न-सन्न
प्रश्न आते थे
जाने किस भीड़-प्रतिरोध की आशा में
कुछ न करने वाले जाने क्यों
निवारण के लिए
एक अपना भी हाथ नहीं उठाते थे।
चार
शक्ति-विस्तार की परंपरा में
जबकि हो रहे थे समझौते
वार्ताएँ हो रही थीं
हाथ मिल रहे थे
हो रहे थे दस्तख़त और गठबंधन लगातार
इस परंपरा पर
कुछ सिरफ़िरों ने एक बार
फिर थूका
खखार खखार।
पाँच
ख़ताएँ तो कीं
जिनसे दुखी थे कुछ सज्जन जो
और दुखी हुए
और भी हुए दुखी कि हमने
भरोसा करते हुए हाथों पर अपने
ज़िंदा रहने
की ख़ता करने
का फ़ैसला किया आगे भी।
- पुस्तक : बारिश मेेरा घर है
- रचनाकार : कुमार अनुपम
- प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
- संस्करण : 2012
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