वह शुरू से ही इसके ख़िलाफ़ थी
पहले थप्पड़ मारती
फिर रोते हुए कहती
—क्यों करते हो ऐसा?
—अभी इस क़ाबिल नहीं हुए हो
कि मेरे बच्चे को अपना नाम दे सको
—प्लीज़, ऐसा मत किया करो
और मेरे गले से लटक कर
फिर रोने लगती
मैं अपनी नज़रों मे ही गिरने लगता
इतना गिरता, इतना गिरता
की ग़लीज़ होने लगता
उसी तरह पिचपिचा और गँधाता हुआ
समय इतना काला है
की किसी को कुछ नहीं दिखता
हत्या जीवहत्या, आत्महत्या, परहत्या भी नहीं
इस समय
अपने दुखों के साथ
अभिशप्त जीवन जीने के लिए अभिशप्त हैं हम
समय की गोद मे ऐंठती है हमारी देह
दम तोड़ देता है हमारा भविष्य
यह अनवांटेड-72 टैबलेट नहीं
दैवीय फल है
इसे मुँह में रखकर
हर बार मौत के मुँह से बाहर निकलते हैं हम
हमारी पीढ़ी को बतला दिया गया है
सत्तर रुपए में
बहत्तर घंटे जीवन जीना असंभव है
असंभव है सत्रह हज़ार की नौकरी का फ़ॉर्म भरना
संभव है अनवांटेड-72 पाना
इस काले समय में
इस उम्र में।
- रचनाकार : निशांत
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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