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उदुम्बर (गूलर)

udumbar (gular)

अखिलेश जायसवाल

अखिलेश जायसवाल

उदुम्बर (गूलर)

अखिलेश जायसवाल

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    मुझे आज भी याद है

    अपने बचपन में सुनी वह कथा

    कि एक दही बेचने वाली स्त्री ने

    पटक दी थी अपनी कँहतरी

    गंगा किनारे चोचकपुर गाँव में।

    जाने कब गिर पड़ा था उसमें

    एक गूलर का फूल

    और वह बन गई थी अक्षय-पात्र

    और दही से अघाकर, फिर आजिज़ आकर

    पटकनी पड़ी थी उसे कँहतरी।

    मुझे कुछ ठीक पता नहीं है

    कि कितना है पुराना

    एक नायिका का यह ताना—

    बलम तुम तो हो गए गुलरी के फुलवा।

    किंबदन्तियाँ उसके क्षीर से बहती हैं

    और लोकोक्तियाँ उसके फलों में पकती हैं।

    वह अदृष्ट-पुष्प है

    और किसी प्रियजन के बिछोह की दीर्घावधि में

    बरबस ही बन जाता है रूपक।

    महाकवि बाण जब 'हर्षचरित' की

    'विंध्याटवी ' में पहुँचे थे

    उसकी नज़रों से बच नहीं सके थे

    और कालिदास के यक्ष ने तो

    इसके पक्व फलों की सुगंधि ही

    बादलों में छुपाकर

    भेजी थी अपनी प्रेयसी को।

    केवल अंबर का उल्लंघन करने से

    वह नहीं हो जाता उदुंबर

    बल्कि प्रतिमानों के आकाश को

    लाँघने के कारण है वह उदुंबर।

    आर्ष यज्ञों में अपनी समिधा देकर

    बना है वह यह यज्ञांग

    और यूप बनकर सहा है

    सारी बलियों का प्रहार।

    अपने क्षीर से किए हैं उसने

    निघंटुओं में अपनी प्रविष्टि के हस्ताक्षर

    और अपनी छाल फलों के ऊपर रखी है

    'सर्वे संतु निरामयाः’ की आधारशिला।

    सायण ने उसे यूँ ही

    उरुबलो विस्तीर्णबलो नहीं कह दिया,

    शतपथ ब्राह्मण में एक आख्यान है—

    जिसमें देवासुर संग्राम के दौरान

    उदुंबर ही एकमात्र वृक्ष है

    जो खड़ा होता है देवताओं के पक्ष में।

    वह ब्रह्म वृक्ष है,

    भद्र है, सौम्य है, सुप्रतिष्ठित है

    और सदाफल है।

    स्रोत :
    • रचनाकार : अखिलेश जायसवाल
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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