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उदासियाँ तुम्हें सौंपती हूँ

udasiyan tumhein saumpti hoon

निधि अग्रवाल

निधि अग्रवाल

उदासियाँ तुम्हें सौंपती हूँ

निधि अग्रवाल

और अधिकनिधि अग्रवाल

    एक शिकंजा-सा है आजकल

    कसता जाता है।

    मौसम बसंत का है

    पर जाने क्यों मुझे पतझड़ याद आता है।

    तुमने कहा था कि जब तुम नहीं रहोगे

    तब मुझे बहुत याद आओगे...

    तुम ग़लत निकले,

    तुम हो और अब भी मुझे बहुत याद आते हो।

    सोचती हूँ गर कुछ घट गया असमय

    तब क्या तुम मुझे याद करोगे?

    या जीवन तुम्हें मौक़ा देगा

    मुझे एक संदेश भर भेज देने का?

    कल उस ट्रक से मेरी कार के टकराने पर

    जो खुल गए होते एयरबैग्स

    तब क्या मैं मिला पाती तुम्हें एक फोन?

    कहते हैं समय के साथ सब बदल जाता है,

    मैं भी बदल रही हूँ।

    तुम्हें भुलाने की कोशिश में

    रोज़ याद करती हूँ तुम्हें,

    बीते कल से थोड़ा और ज़्यादा

    और जब याद करते थक जाती हूँ,

    तब सोचती हूँ कि क्या तुम भी मुझे

    याद करते होगे?

    पर नहीं, याद करते तो क्या नाम पुकारते

    और जो पुकारते तब क्या मुझे सुनाई देता,

    उदासियों में गहरे डूबते मैं सोचती हूँ

    सदा कौन साथ निभाता है?

    आख़िर यह दुःख कब तक साथ चल सकता है

    कभी तो थक कर बैठेगा,

    मैं तुम्हारी नहीं...

    उस दिन की प्रतीक्षा में हूँ।

    अब तुम नहीं हो पास,

    आँगन में लगे नीम से

    मैं दिन भर करती हूँ बातें।

    वह मेरी उदासी हवाओं में घोल देता है।

    इसी हवा में कहीं तुम भी लेते होगे साँस

    लो, आज मैं अपनी उदासियाँ तुम्हें सौंपती हूँ!

    स्रोत :
    • रचनाकार : निधि अग्रवाल
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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