कितना कुछ है मेरे और तुम्हारे बीच इस ऊब के अलावा
यह ठीक है तुम्हारे छूने से अब मुझे कोई सिहरन नहीं होती
और एक पलंग पर साथ लेटे हुए भी
हम अक्सर एक-दूसरे के साथ नहीं होते
मैं चाहती हूँ कि तुम चले जाया करो अपने लंबे-लंबे टूरों पर
तुम्हारा जाना मुझे मेरे और क़रीब ले आता है
तुम्होर लौटने पर मैंने सँवरना भी छोड़ दिया है
तुम्हारी निगाहों से नहीं देखती अब मैं ख़ुद को
यह कितनी अजीब बात है कि ये धीरे-धीरे मरता हुआ रिश्ता
कब पूरी तरह मर जाएगा इसका एहसास भी नहीं होगा हमें
लेकिन फिर भी
तुम्हारी अनुपस्थिति में जब किसी की बीमारी की ख़बर आती है
तो मुझे तुम्हारे सुन्न पड़ते पैरों की चिंता होने लगती है
कोई नया पल जब मेरी ज़िंदगी में प्रस्फुटित होता है
तो बहुत दूर से ही पुकार के मैं तुम्हें बताना चाहती हूँ
कि आज कुछ ऐसा हुआ है कि
मुझे तुम्हारा यहाँ न होना खल रहा है
कि तुम ही हो जिससे बात करते वक़्त मैं नहीं सोचती कि
यह बात मुझे कहनी चाहिए या नहीं
और जब मुझे ज्वर हो आता है
तुम्हारा हर मिनट फ़ोन की घंटी बजाना और मेरा हाल पूछना
शायद वह ज्वर तुम्हारा ध्यान खींचने का बहाना ही होता था शुरू में
लेकिन अब इसकी मुझे आदत हो गई है
और मैं ढूँढ़ ही नहीं पाती वह दवा
जो तुम रात के दो बजे भी घर के किसी कोने से ढूँढ़कर ले आते हो मेरे लिए
और सिर्फ़ तुम ही जानते हो इस पूरी दुनिया में
कि सर्दियों में मेरे पैर सुबह तक ठंडे ही रहते हैं
कि मुझे बहुत गर्म चाय ही बहुत पसंद है
कि आइसक्रीम खाने के बाद मैं ख़ुद को इतनी कैलरीज़ खाने के लिए कोसूँगी ज़रूर
कि तुम्हारे ड्राइविंग करते हुए फ़ोन करने से मैं कितना चिढ़ जाती हूँ
कि जब तुम कहते हो बस अब मैं मर रहा हूँ
तो मैं रुआँसी नहीं होती
उल्टा कहती हूँ तुमसे
50 लाख का इंश्योरेंस करवा लो ताकि
मैं बाक़ी ज़िंदगी आराम से गुज़ार सकूँ
और फिर कितना हँसते हैं हम दोनों
इस तरह मौत से भी नहीं डरता ये हमारा रिश्ता
तो फिर ऊब से क्या डरेगा?
ये हमारे बीच का कम्फ़र्ट लेवल है न
यह उस ऊब के बाद ही पैदा होता है
क्योंकि किसी को बहुत समझ लेना भी जानलेवा होता है प्रिये
कितनी ही बातें हम इसलिए नहीं कर पाते कि हम जानते होते हैं
कि क्या कहोगे तुम इस बात पर
और केसे पटकूँगी मैं बर्तन जो तुम्हारा बीपी बढ़ा देगा
और इस तरह ख़ामोशी के पहाड़ों को नीला रँगते हुए ही दिन बीत जाता है
और उस पहाड़ का नुकीला शिखर
हमारी नज़रों की छुरियों से डर कर भुरभुराता रहता है
और जब तुम नहीं होते शहर में
मैं कभी सुबह की चाय नहीं पीती
और अख़बार भी यूँ ही तह लगाया पड़ा रहता है
खाना भी एक समय ही बनाती हूँ
और और वह नीला रँगा पहाड़ धूसरित रंग में बदल जाता है
फ़ोन पर चित्र नहीं दिखते इसलिए जब शब्द आवश्यक हो जाते हैं
तुम पूछते हो क्या कर रही हो
मैं कहती हूँ बॉयफ़्रेंड की हंटिंग के लिए जा रही हूँ
और तुम शुभकामनाएँ देते हो
और कहते हो कि इस बार कोई अमीर आदमी ही ढूँढ़ना
ये डार्क ह्यूमर हमारे रिश्ते को कितनी शिद्दत से बचाए रखता है
और इस ऊब में उबल-उबल कर
कितना गाढ़ा हो गया है यह हमारा रिश्ता।
- पुस्तक : मेरी यात्रा का ज़रूरी सामान (पृष्ठ 17)
- रचनाकार : लीना मल्होत्रा राव
- प्रकाशन : बोधि प्रकाशन
- संस्करण : 2012
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