टूटे हुए काँच का क्या करना है?
tute hue kanch ka kya karna hai?
घर की दीवारों पर लटकी तस्वीरें
जब गिर जाती हैं
किसी का दिमाग़ कहता है गुरुत्वाकर्षण
किसी का दिल कहता, अच्छा शगुन
पर ये दोनों ही गिरी तस्वीरों का भार नहीं उठाते
उसे उठाते हैं दो हाथ
वे तस्वीरों के घातक तत्त्व को जानते हैं
उनके पास न कारण है, न निवारण
पर है एक सवाल
कि ‘टूटे हुए काँच का क्या करना है?’
काँच के महीन टुकड़ों में छिपी है,
चुपचाप चीरने की संभावना
और कुछ टुकड़ों की नोक पर
मौत तैरती है
ऐसे में उन्हें
साधारण कचरे की तरह
कैसे रुख़्सत करें?
इसलिए वे हाथ
सीमित समाधान लिए
काँच लपेट आते हैं परत दर परत काग़ज़ों पर
और बेतहाशा लिख देते हैं उन पर
‘काँच...काँच...काँच...काँच...काँच’
काँच का कचरा अब
पुड़िया बन कहीं दूर तैरता है
और एक कविता बन यहाँ!
- रचनाकार : प्रकृति करगेती
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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