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तुम्हारे साथ

tumhare sath

गौरव भारती

गौरव भारती

तुम्हारे साथ

गौरव भारती

और अधिकगौरव भारती

    तुम्हारे साथ

    तुम्हारा शहर

    अपना-सा लगा

    तुम्हारे साथ

    मैंने जाना

    कि शहर को जानना हो तो

    शहर में बहती नदी को जानना चाहिए

    नदी की रेत में शहर की आदिम कथाएँ दबी होती हैं

    तुम्हारे साथ

    मैंने समझा

    कि श्मशान वह जगह है जहाँ सिर्फ़ देह नहीं जलती

    आग की लपट और दुर्गंध की सानी में

    भविष्य की कई योजनाएँ भी राख हो जाती हैं

    मैंने समझा

    कि अच्छी सड़कें भ्रम पैदा करती हैं

    अन्न नहीं

    अच्छी सड़कों के सहारे पहुँचा जा सकता है

    बहुत दूर, बहुत जल्दी

    मगर अच्छी सड़कों के सहारे जीवन नहीं सुधरता

    बहुत दूर, बहुत जल्दी

    मैंने समझा

    कि जीवन में अपरिहार्य जैसा कुछ भी नहीं होता

    यह मनुष्य है

    जो अपनी प्राथमिकताएँ तय करता है

    लाभ देखता है

    सीढ़ियाँ चढ़ता है

    और बिसारता जाता है पुराना सब कुछ

    तुम्हारे साथ

    मैंने तुम्हें जाना

    तुम्हारे साथ

    मैंने समझा ख़ुद को भी

    तुम्हारे साथ

    थोड़ा और मनुष्य हुआ मैं

    तुम्हारे साथ

    हुआ थोड़ा और ज़िम्मेदार।

    स्रोत :
    • रचनाकार : गौरव भारती
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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