तुम्हारे दरवाज़े पर तो कभी नहीं आते हैं बादल?
tumhare darwaze par to kabhi nahin aate hain badal?
गुलज़ार हुसैन
Gulzar Hussain
तुम्हारे दरवाज़े पर तो कभी नहीं आते हैं बादल?
tumhare darwaze par to kabhi nahin aate hain badal?
Gulzar Hussain
गुलज़ार हुसैन
और अधिकगुलज़ार हुसैन
वे काँटों से बचकर बेर तोड़ने के दिन थे
जब पगडंडियों से उड़ती धूल-सी तुम्हारी हँसी
फैल जाती थी मुझ पर
तुम हँसती थी मुझे जामुन के पेड़ से उतरते देखकर
कहती थी कि मैं बंदर हो जाता हूँ
एक डाल से दूसरे पर उछलते हुए
अधपके हरे-बैंगनी और खट्टे जामुन मैं तुम्हारे दुपट्टे में रखता था
और तुम हवा से बिखरे मेरे बालों को देखकर
मुझे पुराने ज़माने का हीरो कहती थी
साँझ में कभी पीले बादल उतर आते थे
मेरे दरवाज़े पर लगे नीम के पेड़ पर
और कड़वे होने पर सिंदूरी हो जाते थे
जब मैं तुम्हें दिखाना चाहता था
बादल के बदलते रंग
तब तुम सरसों के खेत से उड़ती मधुमक्खियों से
डरती हुई भागती थी
न जाने किस ओर
और मैं दूर से ही कहता था
तुम्हारे दरवाज़े पर तो कभी नहीं आते हैं बादल?
लेकिन मेरी वह आवाज़ लौट आती थी
मिडिल स्कूल की रंग उड़ी दीवारों से टकराकर
- रचनाकार : गुलज़ार हुसैन
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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