इस मौसम भी
गुलमोहर ज़रूर खिला होगा
मैं ही मुरझा रही हूँ
तुम्हें देखना था जी भर
आँचल में भर लेना था
मन की तहों में दबा कर रखना था
कि गुलमोहर मेरी याद में
तुम्हारा आख़िरी प्रेमपत्र है
मेरी उदासियों को पढ़ सकते हो तो पढ़ लेना
इस तन्हाई में बस इतना भरम रखते हैं
गुलमोहर के झरने से पहले
ख़त्म हो जाएँगी सारी दूरियाँ
उसके लाल दहकते फूलों से लदी डालियाँ
बचाए हैं हरे पत्तों में थोड़ा-सा मेरा बचपन
वहीं कहीं चिपकी है उसकी शाख़ पर
मेरे माथे की लाल बिंदी
बाहर दहक रहा है मौसम
अंदर भरा है महमह गुलमोहर का लाल रंग
इस लाली से बचेगी दुनिया
कि गुलमोहर मेरी याद में
तुम्हारा आख़िरी प्रेमपत्र है
तुम जा रहे हो!
जाओ!
मुझे याद मत करना
मत कुरेदना भूल कर मेरी किसी बात को
हमारे बीच केवल बातें थीं सेतु
बस इस सेतु को बचाए रखना
तुम जब भी पुकारोगे
मेरी बातें थाम लेंगी तुम्हारी उँगली...
देखना वहीं कहीं गदराया मिलेगा
दहकते लाल रंग में डूबा
खिलखिलाता गुलमोहर
बचपन की भोली मुस्कान लिए
बिना किसी यातना या छल के
गा रहा होगा वह गीत
जिसे तुम गुनगुनाते थे
हँस कर थाम लेगा तुम्हारा हाथ
जब भी थक कर गिरोगे
महसूसना उसके स्पर्श में
मेरे छुवन को...
मैंने धो-सूखा कर रख लिया है
सहेज कर मन की पिटारी में
क्योंकि गुलमोहर मेरी याद में
तुम्हारा आख़िरी प्रेमपत्र है
सुनो!
मुझसे मत कहना कि तुम मेरे प्रेम में थे
ग़लती से भी मत कहना
कुछ बातें कहने के साथ ही
अपना अर्थ खो देती हैं
हमारे बीच कितना प्रेम था
सोचना और लिखना
कहना-सुनना
संभव नहीं मेरे लिए
मैंने आँचल के कोर में बाँध लिया
फागुन की गाँठ की तरह
तपती जेठ की दुपहरी में
जलती धरती की छाती पर
विरहन की हूक की तरह उठती तुम्हारी यादें
इन सन्नाटे भरे दिनों में
जब जीना दुभर हो रहा हो तन्हाई में
मैंने सीख लिया प्रेम करना ख़ुद से
पकड़ कर तुम्हारी यादों की डोर
क्योंकि गुलमोहर मेरी याद में
तुम्हारा आख़िरी प्रेमपत्र है
थोड़ा नरम
थोड़ा गरम
थोड़ा खट्टा... मीठा भी
तुम्हें देखते हुए
मुझे बचपन के चूरन याद आते हैं
ख़ूब गिले-शिकवे
उलाहने
तुम समझे नहीं
मैंने बताया नहीं
जाओ यहीं छोड़कर
अपनी बातों की तासीर
जब तुमने कहा कि
मैं तुम्हारे दिल में रहती हूँ
बस इतना बहुत था
मैंने आँखे बंद कर लीं
सहेज लिया सब कुछ
जाओ! तुम ख़ुश रहना और बाँटते रहना
दुनिया में मेरे हिस्से का प्रेम...
जब-जब खिलेंगे गर्म मौसम में
गुलमोहर के फूल
मैं तलाश लूँगी तुम्हारे प्रेम की लाली
धरती ख़ुश हो लेती है जैसे
तमाम उलाहनों के बीच
गुलमोहर से मिलकर
मैं बचा कर रखूँगी रसोई में
हल्दी के डिब्बे में थोड़ा-सा पीलापन
हल्दी की थाप से सजी तुम्हारी गलियाँ
जब जोहती हैं बाट बसंत की
सावन को पुकारतीं हैं किसी नवब्याता बेटी की तरह
मैं जेठ की लू भरी दुपहरी से पूछती हूँ तुम्हारा पता
न जाने किस देश में है तुम्हारा ठौर
तुम जब भी लौटना
पूछ लेना गुलमोहर से मेरा पता
क्योंकि गुलमोहर मेरी याद में
तुम्हारा आख़िरी प्रेमपत्र है।
- रचनाकार : सोनी पांडेय
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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