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तुलसी स्वीट्स

tulsi sweets

कृष्णमोहन झा

कृष्णमोहन झा

तुलसी स्वीट्स

कृष्णमोहन झा

और अधिककृष्णमोहन झा

    जो आदमी सामने कुर्सी पर बैठा रहता था

    कल तक

    आज वह दीवार पर टँगा है

    जबकि एक कोने में

    पानी से भरा जग रखा है यथावत्

    परातों में

    उसी तरह मिठाइयाँ सजी हुई हैं

    सीढ़ियों के नीचे

    पूर्ववत् जमी है चप्पल-जूतों की धूल

    और ऊपर किराएदार के गमलों में

    ज्यों के त्यों लहक रहे हैं तरह-तरह के फूल…

    लेकिन कल तक

    जो आदमी सामने कुर्सी पर बैठा रहता था

    आज वह

    वहाँ

    दीवार पर टँगा है।

    और दिनों की तरह ही

    आज भी

    इस सड़क से एक नहाई-धोई सुबह गुज़रेगी

    आज भी पसीने से लथपथ एक दुपहर

    अपना ठेला सड़क किनारे छोड़कर

    किसी ट्रक या पेड़ की छाया में सुस्ताने बैठ जाएगी

    आज फिर एक अपराह्न

    किसी छोटी-मोटी ट्रॉली पर

    किसी देवी की सुंदर प्रतिमा स्थापित कर

    प्रसाद लुटाते…

    रंग-गुलाल उड़ाते प्रेमतला की और निकल जाएगा…

    आज फिर ताँत की साड़ी में लकदक एक शाम

    नाक को रूमाल से ढँके

    गली को पार करती हुई मुख्य सड़क पर आएगी

    और किसी घरेलू कथा में व्यस्त

    बराक मार्केट की और चली जाएगी...

    आज फिर

    धीरे-धीरे रिक्शे लौट जाएँगे अपने-अपने ठिकाने पर

    एक-एक कर दुकानों के होंगे बंद शटर

    फिर समूचा शहर

    टी.वी. धारावाहिक और माछेर झोल में डूब जाएगा

    और यह कोई नहीं जान पाएगा

    कि कल तक

    जो आदमी सामने कुर्सी पर बैठा रहता था—

    वहाँ

    आज वह अपनी निरीह मुस्कुराहट में क़ैद

    दीवार पर टँगा है

    मुझे पता है

    कुछ दिनों तक उसकी चप्पलें खोजेंगी उसे

    कुछ समय के लिए उसका मौन भी हकलाएगा

    कुछ अरसे तक उसकी प्यास ख़ूब तड़पेगी

    कुछ रातों तक उसका तकिया भी कछमछाएगा

    लेकिन एक दिन

    उस माला की ख़ुशबू भी

    चुपके से छोड़कर चली जाएगी उसे

    एक दिन उसका सामान बरामदे पे जाएगा

    एक दिन उसका कमरा लग जाएगा किराए पर

    एक दिन वह स्मृति से भी निकल जाएगा…

    स्रोत :
    • रचनाकार : कृष्णमोहन झा
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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