एक जीवन में
हमें कितनी बार मरना है
यह तय करना
सिर्फ़ हमारे हाथ में होना चाहिए
एक बार से अधिक मरना
मनुष्य होने की गरिमा पर
दाग़ की तरह लगता है…
और एक बार तो आप कहीं भी
कैसे भी मर सकते हैं
सड़क पार करते हुए
या पंखे के नीचे सोते हुए
कई लोग तो मैथुन करते हुए भी मारे गए हैं
फिर आईने से नज़र मिलाकर
जो सच है उसका साथ देते हुए
न्याय और हक़ और प्रेम के लिए मरने में क्या दिक़्क़त है?
ये जो हवाओं में भरोसा है
ये जो जंगल में आदिम गंध है
ये जो बादल और धरती के बीच एक रागदारी है
ये सब किसके दम पर है?
अँधेरी सुरंगों के पार
उम्रदराज़ उम्मीदों के पास हमेशा
रोशनी के बेशुमार क़िस्से होते हैं,
तुम सुनने की ताब और चलने का हौसला करो
लड़ाई के औज़ार ख़ुद तुम्हारा हाथ थाम लेंगे
और तुम्हें 'मृत्योर्मामृतं गमय' का मर्म समझ आ जाएगा
फिर यहाँ कोई अकेला ईश्वर नहीं हो पाएगा।
- रचनाकार : अनादि सूफ़ी
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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