जब माँ की काफ़ी उम्र हो गई
तो वह सभी मेहमानों को नमस्कार किया करती
जैसे वह एक बच्ची हो और बाक़ी लोग उससे बड़े
वह हरेक से कहती बैठो कुछ खाओ
ज़्यादातर लोग उसका दिल रखने के लिए
खाने की कोई चीज़ लेकर उसके पास कुछ देर बैठ जाते
माँ ख़ुश होकर उनकी तरफ़ देखती
और जाते हुए भी उन्हें नमस्कार करती
हालाँकि उसकी उम्र के लिए यह ज़रूरी नहीं था
वह धरती को भी नमस्कार करती
कभी अकेले में भी
आख़िर में जब मृत्यु आई तो उसने उसे भी नमस्कार किया
और जैसे अपना जीवन उसे देते हुए कहा होगा
बैठो कुछ खाओ।
- रचनाकार : मंगलेश डबराल
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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