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फ़िल्म

film

व्योमेश शुक्ल

और अधिकव्योमेश शुक्ल

     

    ख़ुद को हिदायत देते हुए शुरू कि यहाँ जो लिखा जाएगा उसे साफ़ बनाना होगा फिर एक उदाहरण को सोचा कि जैसे अनएडिटेड फ़िल्म में रशेज़ घुले होते हैं वैसे इस लिखे में भी रशेज़ होंगे जिन्हें शायद एडिट करना पड़े

    रशेज़ वाली बात एक और बात से जुड़ गई कि 
    स्मृति रशेज़ की तरह बची रहती है 
    विस्मरण उसे एडिट कर डालता है 
    फिर असंबद्ध तर्कातीत स्मृतिफ़्रेम बचे रहते हैं
    जिसमें कल्पना की मदद से और स्मृति पर ज़ोर डालने से हम कुछ जोड़ते हैं 

    यदि स्मृति के रशेज़ से फ़िल्म बनानी है तो नैरंतर्य लाने के लिए 
    कल्पना का इस्तेमाल करना होगा नहीं तो 
    ऊट-पटांग दृश्यों का कोलाज़ बन जाएगा 
    जिसे ख़ुद के अलावा कोई नहीं समझ पाएगा 
    यह फ़िल्म बहुत अमूर्त हो जाएगी 
    क्योंकि इसके मूर्त दृश्यों का तात्पर्य नहीं होगा 
    या उतना ही मूर्त होगी जितना ऊट-पटांग में ऊँट

    हम पूरा याद नहीं रख पाते इसका नतीजा स्मृति अधूरी रहकर भुगतती है 
    जैसे पाँच साल का जब मैं था तब पापा मर गए वह बंबई में मरे थे 
    उनकी लाश आई थी 
    मरने के अरसा पहले से वह बाहर ही रहते थे कभी-कभी आते थे 
    उनके आने की स्मृति के नाम पर एक दृश्य है 
    जिसमें वह सफ़ेद धोती-कुर्ता में एक रिक्शे पर बैठे हैं
    और रिक्शा मेरी गली में है
    स्मृति में लगभग खड़े रिक्शे को सोचने पर
    रिक्शा खड़-खड़ ईंट गली में शायद कल्पना के पहिए पर चलने लगा 
    या रबर के पहिए पर 
    एक स्मृति एहसास की तरह मेरे पास है 
    पापा की गोद गड़ती थी बाद में मालूम हुआ कि वह खादी का सफ़ारी सूट पहनते थे
    जिसके रेशे गड़ते थे 
    लेकिन यह स्मृति नहीं सूचना है 
    अब स्मृति में जज़्ब हो गई है 

    इस तरह जाना कि स्मृति शुद्ध नहीं होती 
    हमारी कल्पना, बोध, ज्ञान, सूचनाएँ, इच्छाएँ 
    यानी इनकी शक्ल में हमारा वर्तमान 
    उसे अशुद्ध करते हुए बचाए रखता है 

    उनकी मृत्यु से जुड़ी स्मृति आज दिलचस्प लगती है 
    जिसका पहला दृश्य यह है कि 
    उनकी लाश आने वाली है की परिस्थिति में 
    मैं दरवाज़े से गली और सड़क तक देख रहा हूँ कि लाश नहीं आई है 
    दूसरे दृश्य में माँ एक जगह बैठी हैं 
    तीसरा दृश्य मेरे भीतर का है जहाँ मैं बहुत ख़ुश हूँ कि ढेर सारे रिश्तेदार और 
    हमउम्र भाई बहन आए हैं 
    और डाला से मानू भैया भी आएगा 
    चौथे दृश्य में पापा ज़मीन पर लेटे हुए हैं उनकी नाक में रुई लगी हुई है 
    पाँचवाँ दृश्य मेरा तलवा है जो श्मशान घाट की पत्थर सीढ़ियों से भयंकर जल रहा है 

    चुंबन से जुड़ी पहली स्मृति में पहली प्रेमिका को न चूम पाने का घना संकोच है 
    और दूसरी स्मृति में दूसरी प्रेमिका को फ़िल्मी ढंग से चूमने की ग्लानि 
    फ़्रेम में न जाने कब घुस गई है 
    निकट स्मृति में एक झूठ सुनाई देता रहता है कि 
    गुजरात में कुछ हुआ ही नहीं था 
    मीडिया और साहित्य के एक हलक़े ने उसे स्कैंडल बना दिया 
    इसके साथ कुछ स्मृतिफ़्रेम और हैं 
    जिनमें से एक में टी.वी. पर शिशुओं स्त्रियों भ्रूणों के मृत शरीर हैं
    और दूसरे में दो तलवारधारी तेज़ मोटरसाइकिल पर सवार
    एक पत्रिका के पृष्ठ से होते हुए कहीं जा रहे हैं

    पृष्ठभूमि का शोर विस्मरण से एडिट है

    यहाँ कल्पना से कुछ जोड़ा या घटाया नहीं गया है

    स्रोत :
    • पुस्तक : फिर भी कुछ लोग (पृष्ठ 12)
    • रचनाकार : व्योमेश शुक्ल
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
    • संस्करण : 2009

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