Font by Mehr Nastaliq Web

बारिश में भीग कर

barish mein bheeg kar

धूमिल

धूमिल

बारिश में भीग कर

धूमिल

और अधिकधूमिल

    सहसा हम क्यों चाहने लगते हैं हमारे सिरों पर

    छत हो

    (जनतांत्रिक) वर्षा में धुली हुई

    क्या यह खुली सड़क काफ़ी नहीं है

    (सच्चाई और शोहरत के बीच बिछी हुई संसद तक)

    फिर हम एक छत क्यों चाहते हैं जब कि यह

    सही कवियों और तुक्कड़ों की

    पहचान का समय है?

    तुमने अपना सिर बरखा को दे दिया है बेलौस

    धन्यवाद जन-कवि और तुमने उसे

    टपकती हुई टप्पर के नीचे छुपा लिया है

    बातूनी नागरिक? तुम्हें भाषा से अधिक

    अपने भीगने का भय है

    यह तुम्हारा मुहावरा है

    बारिश में भीग कर चमड़े को ख़तरा है

    —इस वक़्त मुनादिया अपनी डुग्गी बजा रहा है

    —सईस अपने घोड़े की जीन

    —नाई उस्तरा रपटने का पट्टा छिपा रहा है

    —और राजनयिक

    जाती गुटबंदी की सतही ‘छ-तीन’

    और यह भी सही है कि बारिश में भीग कर

    चमड़े की हर चीज़ अपनी औक़ात से

    औसतन कुछ ज़्यादा हो जाती है

    क्योंकि चमड़े पर बजने वाली सुविधा

    जल थुलथुल मसक-मसलन मादा हो जाती है

    वाक़ई चमड़े को ख़तरा है। तुक्कड़ जी!

    राम-राम जाइए!

    और रामझरोखे बैठकर शाम का तुक

    लगाम से मिलाइए।

    लेकिन कविता चमड़ा नहीं है

    इसलिए कविता में गाती है घास

    आदमी की ज़ुबान से तिनका भर आगे बढ़कर

    सदियों से अपने रौंदे जाने के इतिहास

    ‘सहना ही जीवन है जीवन का जीवन से द्वंद्व है

    मेरी हरियाली में मिट्टी की करुणा का छंद है’

    और यही कारण है कि दल बदल करते उतावले

    बादलों को चाबुक से पीटकर

    जीवन रस गारती है। दौड़-दौड़ सारे आकाश में

    बिजली

    सदियों से रौंदी हुई घास को पुकारती है

    इसीलिए कविता में मामूली (पनरोपना)

    डिब्बा गुर्राता है झुग्गी के छेद से

    ‘टपकता है तो टपक

    लेकिन बिजुरी की अँगुरी पकड़

    कथरी पर सोए हुए मुन्ने पर मत लपक।’

    और कवि इन्हीं छोटे-छोटे ब्यौरों को गाता है

    उसकी यही साख है

    उसके लिए कविता सिर्फ़ शब्दों की बिसात नहीं

    वाणी की आँख है

    बारिश में भीगकर आल्हादित कवि

    नंगे सिर घूमता है कीच भरे रास्तों पर

    अनुभव के नए-नए पृष्ठों पर

    भाषा के समर्थन में बूँदें गिरती हैं

    जैसे सामूहिक हस्ताक्षर अभियान में

    आसमानी दस्तख़त।

    और कविता-कविता से भीगती है

    तृप्त और कृतज्ञ जैसे पानी—

    पानी से भीगता है समरस और शांत।

    स्रोत :
    • पुस्तक : कल सुनना मुझे (पृष्ठ 73)
    • रचनाकार : धूमिल
    • प्रकाशन : वाणी प्रकाशन
    • संस्करण : 1999

    संबंधित विषय

    यह पाठ नीचे दिए गये संग्रह में भी शामिल है

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    जश्न-ए-रेख़्ता | 13-14-15 दिसम्बर 2024 - जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, गेट नंबर 1, नई दिल्ली

    टिकट ख़रीदिए