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मैं बड़ा होकर महान नहीं बनना चाहता

main baDa hokar mahan nahin banna chahta

संजय चतुर्वेदी

संजय चतुर्वेदी

मैं बड़ा होकर महान नहीं बनना चाहता

संजय चतुर्वेदी

मैं वॉयलिन बजाना चाहता हूँ

लेकिन मैं नहीं समझता इसका झूमर-झालर से कोई संबंध है

मैं बनना चाहता हूँ फ़ुटबॉल का खिलाड़ी

बिना वीज़ा अंतरराष्ट्रीय सीमाओं में ख़लल पैदा करता

मैं पेड़ों को प्यार करना चाहता हूँ

लेकिन इस तरह तो कभी नहीं

जिस तरह कोई छोड़ता हो स्टेडियम में भयभीत कबूतर

मैं आर्कटिक की बर्फ़ पर रेल की पटरी बिछाना चाहता हूँ

सहारा में खोदना चाहता हूँ कुआँ

मैं पार करना चाहता हूँ लंबाई में हिमालय

बल्कि मैं उत्तर-दक्षिण होते हुए

पैदल चक्कर लगाना चाहता हूँ पृथ्वी का

छोटे से जीवन में मुश्किल है कोई भी काम

अगर साथ में बनना हो महान भी

मैं बहत्तर साँपों के साथ छियत्तर घंटे बिल्कुल भी नहीं रहना चाहता

मैं नहीं जानता इससे आदमी का कमाल साबित होता है या साँपों का

मैं चाहूँगा कुछ ऐसा हो कि मच्छर रहे आदमी रहे और मलेरिया भी

इसमें किसी को बुख़ार होने की क्या ज़ुरूरत है

मैं भयभीतों को और भयभीत नहीं करूँगा

पृथ्वी तंग चुकी है इतनी महानता से

टिड्डियों की नसबंदी का कोई कार्यक्रम मेरे दिमाग़ में नहीं है

हालाँकि मैं चाहूँगा जो खेती करते हैं

वे खेती करते रहें

महान लेखन पहले ही बहुत हो चुका है

और जारी है

मैं काएकू ट्रैफ़िक जाम करूँ

बहुत संभव है मैं एक दिन दूर देशों का पता लगाऊँगा

झंडे गाड़ने वाले आएँगे कई दिनों बाद।

स्रोत :
  • रचनाकार : संजय चतुर्वेदी
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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