Font by Mehr Nastaliq Web

तितलियाँ

titliyan

सत्येंद्र कुमार

और अधिकसत्येंद्र कुमार

    सीमा के उस पार से आई हैं तितलियाँ।

    उस देश की धूल लिपटी पड़ी है उसकी देह से।

    कई बाग़ों के फूलों की सुगंध बसी है उसके भीतर।

    रंग-बिरंगी प्यारी-सी तितलियाँ

    इंद्रधनुष के रंग अपने में बसाए

    सेनाओं की चौकियों के बीच से

    सीमा के इस पार चली आती है हमेशा,

    बैठ जाती है बच्चों के कंधों पर।

    बच्चों के शरीर में फैलने लगती है

    सीमा के उस पार के बाग़ों की सुगंध।

    उस देश की गलियों की धूल

    तितलियों ने झाड़ दी है बच्चों के कंधों पर।

    सीमा पार के बच्चों ने तितलियों के साथ भेजे हैं

    अपने दोस्तों के लिए ढेरों संदेश।

    बच्चे तितलियों की पालकी अपने कंधों पर उठाए

    दौड़ते रहते हैं बाग़-बग़ीचे में

    बच्चों की हमवतन होती हैं तितलियाँ

    सीमा के पास की सेनाएँ नहीं जान पाई हैं

    कि कैसे एक देश की सीमा पार कर

    दूसरे देश की सीमा में प्रवेश कर जाती हैं तितलियाँ।

    सीमा के इस पार से उस पार

    और उस पार से इस पार

    इसी तरह आती-जाती रहती हैं तितलियाँ।

    इस घुसपैठ की ख़बर नहीं है

    देशों की सरकारों को,

    शायद पता होता तो

    बंदूक़ें गरजती, तोपें दगतीं

    लेकिन कितना कुछ बचाकर

    हर बार तितलियाँ पार कर रही हैं सीमाएँ

    हर बार सीमा पर

    उन्हें इंतज़ार करते मिल ही जाते हैं बच्चे

    सत्ता का पाठ भुलाकर

    तितलियाँ का पाठ याद करते हैं बच्चे।

    जब भी तेज़ होगी हवा

    सीमा के उस पार से इस पार

    चली ही आएँगी कटी हुई पतंगें।

    बच्चे इसकी चिंता नहीं करेंगे

    कि किधर से रही हैं पतंगें।

    अब भला हवा कहाँ कहा मानती है बंदूक़ों का?

    वह तो बहेगी ही और उड़ा ले आएगी उस पार की ख़ुशबू।

    कटी हुई पतंगें भी उसके साथ

    मस्ती से हिचकोले खाते

    चली ही आएँगी इस पार।

    बच्चे भूलते जा रहे हैं सीमाओं का अनुशासन;

    तितलियों और हवाओं के खेल में

    शामिल होने लगे हैं बच्चे।

    वे नकारने लगे हैं काग़ज़ के नक़्शे

    बच्चों को तितलियों और पतंगों से

    प्यारी नहीं है सीमाएँ।

    अगर मालूम हो जाए राष्ट्राध्यक्षों को

    कि कैसे बच्चे उनके बनाए नक़्शों का

    करते हैं उपहास,

    तो यह तय है—

    कि एक अपराध के लिए राष्ट्राध्यक्ष

    बच्चों को भी नहीं छोड़ेंगे

    तितलियों को दे दी जाएगी फाँसी,

    पतंगों पर लगा दिए जाएँगे पहरे।

    हवा को एक तरफ़ से

    दूसरी तरफ़ जाने से रोकने के लिए

    किए जाएँगे लाखों यत्न।

    (बच्चों की दुनिया छोटी करने के लिए

    किए जाते हैं अनेकों उपाय।)

    उनकी तमाम कोशिशों के बाद भी

    नहीं ख़त्म होगी बच्चों की कारगुज़ारियाँ

    हर बार दोस्तों की पुकार पहुँच जाएँगी उन तक

    यह पृथ्वी के लिए सबसे ख़ूबसूरत ख़बर है—

    कि बार-बार उठेंगे बच्चे

    और सीमाओं के व्याकरण को नकार

    फिर से शामिल हो जाएँगे

    तितलियों के साथ दौड़ में।

    उनके लिए पृथ्वी एक बड़े मैदान में बदल जाएगी,

    जिसमें विश्व के सारे बच्चे धमाचौकड़ी मचाएँगे।

    युगलबंदी की तरह बजेगी पृथ्वी।

    सीमाओं पर भले ही गरजती रहें तोपें,

    बच्चे हमेशा उनसे दूर

    नए निर्माण की तैयारी करते रहेंगे,

    अपने नन्हे-नन्हे हाथों से

    आसमान के सीने पर टाँग देंगे

    एक नया सवेरा।

    स्रोत :
    • पुस्तक : आशा इतिहास से संवाद है (पृष्ठ 93)
    • रचनाकार : सत्येंद्र कुमार
    • प्रकाशन : राधाकृष्ण प्रकाशन
    • संस्करण : 2006

    संबंधित विषय

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    जश्न-ए-रेख़्ता | 13-14-15 दिसम्बर 2024 - जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, गेट नंबर 1, नई दिल्ली

    टिकट ख़रीदिए