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तृष्णा

tirishna

ग़ुलाम रसूल संतोष

और अधिकग़ुलाम रसूल संतोष

    कहो इन आकाश में चमकते तारों से

    आज शीघ्र ही अपनी दुकानें बढ़ा दें

    बाधित हो रहा हूँ मैं

    और मेरे अंतहीन विचारों का संतुलन बिगड़ जाता है

    पता नहीं आज क्या घटने वाला है

    कुत्तों ने सायंकाल से ही भौंकना शुरू किया है

    कहीं काल मेरी ताक में तो नहीं बैठा है?

    सवेरे से मेरी बायीं आँख भी फड़क रही

    देखो किसी ने मेरी खिड़की ठकठकाई है

    नीचे कोई चुपके से खिसका भाग गया

    मेरी गर्दन में मोच रही है, खिड़कियाँ खोल दो

    मैं चाँदनी को अपने आलिंगन में भर लूँ

    आकाश में चमकते कार्तिक के चंद्रमा से कहो

    क्यों यह अँधेरी रातों को भूल जाता है

    जब चमकता सौभाग्य फिर जाता है

    तो यह तारों के संग अपनी ही लुका-छुपी में

    रहता है मस्त

    मैं उम्रों से धूनी जलाए बैठा हूँ

    ज़रा सड़क पर पहरा दे रहे पहरेदार से पूछो

    यह नादान किसकी दुकान की पहरेदारी कर रहा है

    इसकी अपनी उम्रों की दुकान दिवालिया हो चुकी है

    और अब दुकान के थड़े पर निश्चिंत बैठा चिलम पी रहा है

    जैसे कोई बड़भागी गद्दी पर हो विराजमान

    सवेरा होगा और लोग जाएँगे अपने काम पर

    तब यह कुतिया को भाँति बैठेगा ज़मीं पर थूथन टिकाए

    ज़रा ठीक से बंद कर दो ये खिड़कियाँ और दरवाज़े

    लगता है किसी ने जैसे पक्षियों को भगाया हो

    छत पर उल्लू ने ज़ोर से दी 'हू' की आवाज़

    मेरी साँस जैसे पलट गई हो

    ज़रा मेरे इन मित्रों से पूछो

    ये मेरे सिरहाने बैठे क्या कर रहे हैं

    बोलो क्या मुझे वास्तव में मरना ही है

    लिया है मैंने अभी-अभी माँ की कोख से जन्म

    क्या मैंने बस क्षण भर में सारा संसार देख लिया

    माँ तुझे मेरा अँगूठा चूसना याद नहीं

    अब भी तेरे स्तनों को चूसूँ तो दूध की नदियाँ बहेंगी

    अब जो मेरी आँख लगी बस पल भर हो गया

    तो तुमने मुझे पट लिटा के रखा

    मुझे वहाँ उस 'ज़ून डब पर सुला दो ना

    मुझे अपनी साँस रुकने का हो रहा है आभास

    यह तो जैसे बहती नदी में शिलाएँ अटक गई हैं

    धुआँ ही धुआँ फैल गया है यह चूल्हा तो बुझा दो

    क्यों ऐसे देख रहे हो जैसे हो गए पत्थर की मूर्ति

    अब तक तो मुझे गोद में उठाकर खिलाते थे

    और अब धूल चाटने को मिट्टी में लधेड़ दिया है

    अब मैं ज़मीन पर बिस्तरे-सा बिखर बिछ गया हूँ

    उस घर के लोगों से कह दो खिड़कियाँ बंद कर दें

    कोई वहाँ डाल रहा है दीए में तेल

    उनसे कह दो ऐसे तो उनका रहस्य फूट निकलेगा

    अरे रिस रहा है दीए के बाहर तेल

    कौन बुझाने के लिए चोरी-छिपे इसे फूँक मार रहा है

    इसकी बाती छछूँदर ले गया है

    तुम कौन हो जो मेरे पैरों के पास ताक में बैठे हो

    अरे कोई मेरा गला दबोच रहा है

    लगता है कि रोते-रोते मुन्ने की हिचकियाँ बँध गई

    अरे कौन छिपा है उस खंभे की ओट में

    अरी तुम इस समय कहाँ उतारने लगी हो मकड़ी के जाले?

    मैं बिना ओढ़नी के ठिठुर गया हूँ

    मत डालो मेरे चेहरे पर चादर

    बुला रहा है कोई मुझे नीचे से

    कोई ज़रा जाके देखो यह कोई अग्नि प्रेत तो नहीं

    अरे गिर गया कोई सीढ़ियों पर लुढ़क गया

    कहाँ गए तुम सब कोई यहाँ तो आओ

    मेरा गला सूख गया है, पानी तो पिला दो

    अरे कोई किसी राजा की कथा तो छेड़ दो

    कोई ऐसी कथा कि जिसका क़यामत तक अंत हो।

    *जून डब : मकान की ऊपरी मंज़िल का बारजा, जहाँ से चाँदनी (ज़ून, ज्योत्सना) का

    नज़ारा किया जा सकता है। प्रसिद्ध राजा 'बदशाह' ने अपनी ऊँची हवेली को यह नाम दिया था।

    स्रोत :
    • पुस्तक : उजला राजमार्ग (पृष्ठ 99)
    • संपादक : रतनलाल शांत
    • रचनाकार : ग़ुलाम रसूल संतोष
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2005
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

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    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

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