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थोड़ा कहूँ बहुत समझना

thoDa kahun bahut samajhna

मौलश्री कुलकर्णी

मौलश्री कुलकर्णी

थोड़ा कहूँ बहुत समझना

मौलश्री कुलकर्णी

और अधिकमौलश्री कुलकर्णी

    थोड़ा कहूँ बहुत समझना

    मेरी हर बात पर हँस लेना

    मेरी लिखावट पर चिढ़ जाना

    मगर क़सम हैं तुमको

    मेरी चिट्ठी पढ़ने के बाद

    उसके चारों कोनों को मिलाकर

    अच्छे से तह लगाना

    और अपने टेढ़े-मेढ़े हो चुके

    चार साल पुराने पर्स में

    जिसपे मैंने लाल रंग के स्केच पेन से

    दो फूल बनाए थे

    सँभाल कर रख लेना

    मुझे एक बार याद कर लेना

    थोड़ा कहूँ बहुत समझना

    तुम झल्लाओगे

    मेरे अनपढ़ क़िस्सों पर

    मेरी शब्दों की नासमझी पर

    मेरी भाषा की ढीली पकड़ पर

    मेरी बेवक़ूफ़ी पर

    मेरे गँवार होने पर

    झल्ला लेना…

    लेकिन क़सम है तुमको

    हर सुबह उठकर मेरी चिट्ठी को

    अपने टेढ़े-मेढ़े

    चार साल पुराने

    दो लाल फूलों वाले पर्स से निकालकर

    बस देख लेना,

    चाहे उसकी तहों को खोल कर,

    चारों कोनो को अलग कर

    मत पढ़ना

    बस देख लेना

    मुझे याद कर लेना

    थोड़ा कहूँ बहुत समझना

    स्रोत :
    • रचनाकार : मौलश्री कुलकर्णी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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