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ठीक-ठाक देश-सा

theek thak desh sa

वीरू सोनकर

वीरू सोनकर

ठीक-ठाक देश-सा

वीरू सोनकर

और अधिकवीरू सोनकर

    जिसे आप देश कहते हैं

    वह एक देह है

    उसके सिर पर बैठ कर कभी

    पतंजलि घोट रहे थे सभ्यता के ज़ख़्मों का मरहम

    जिसके बाएँ हाथ पर सात बहनें बाट जोह रही थीं

    अपनी घर-वापसी की

    तो दाहिना हाथ बना रहा था

    हल्दी घाटी के युद्ध की अदम्य योजना

    पैरों में जिसके किसी पत्नी-वियोगी ने बाँधे थे पहले इंसानी पुल के हाथ

    चलकर लौटना था जहाँ से, एक स्त्री को वापस अपने देश

    उठ खड़े होना था जहाँ फिर से बिरसा मुंडा को

    जहाँ बार-बार लौटते थे

    नेता-ठग-डाकू और मुग़ल

    जहाँ चरखे संग घूम गई थीं साम्राज्यवाद की चूलें

    जहाँ किसी ने माँगा था ख़ून, और कहा था मैं तुम्हें आज़ादी दूँगा

    जहाँ रोज़ घट रही है

    उस देह को काटने की साज़िशें,

    मैं उसके मुँह से बस्तर की आवाज़-सा कराहता हूँ

    ऋचाएँ और आयतें सुन-सुन कर

    मैं एक कान से बहरा हूँ

    मैं विकास की दौड़ में पीछे रह गया डेढ़ पैर का धावक हूँ

    मैं सन्नाटे में मिल गई एक अकेली स्त्री का भय हूँ

    नक़्शे की शक्ल में बहुत दूर तक फैली एक राष्ट्रीय असुरक्षा हूँ

    तीन युद्ध जीतने, और एक युद्ध हारने का सीधा-सपाट बयान हूँ

    मैं सबसे पीछे खड़े आदमी की शक्ल पर हर रात उतर आया

    एक बहुत बड़ा प्रश्नचिह्न हूँ

    मेरा उपचार एक सौ चवालीस खंभों पर टिका एक सवाल है

    मैं गाँवों का हाथ पकड़े खड़ी, एक चिढ़ी हुई 'राष्ट्रीय-प्रतीक्षा' भी हूँ

    अगर सहमत हों आप सब,

    तो मैं उस देह से पूछना चाहता हूँ

    क्या मैं तुममे किसी ठीक-ठाक देश-सा घट जाऊँ?

    स्रोत :
    • रचनाकार : वीरू सोनकर
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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