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सूत्रधार कुछ कहता है

sutradhar kuch kahta hai

निर्मला गर्ग

निर्मला गर्ग

सूत्रधार कुछ कहता है

निर्मला गर्ग

और अधिकनिर्मला गर्ग

    आज खेला नहीं हो सकेगा

    साहेब!...

    गोस्सा होइए

    जूता-चट्टी फेंकिंए

    पर्दा पर

    अइमें कंपनी का कोनो क़सूर नहीं

    जे रामलोचनवा था

    वहे जे हरिश्चन्नर बनता था

    ओकरा लड़का मर गया है

    भिनसारे

    एतना जल्दी अब

    दोसरा हरिचन्नर कहाँ से लाबें

    फेर जे पारट

    रामलोचनवा करता है

    आप जनते हैं

    बखत कमाले कर देता है

    जब रानी शैब्या से

    रोहित के लिए

    कफ़न मँगता है

    केतना लोर खसता है

    आप सबकी आँख से

    मुदा ओकरा हाथ तनको नहीं काँपता

    आहे रामलोचनवा के

    लड़का मर गया है भिनसारे

    एकेगो था हुज़ूर

    बोखार था छह महीना से

    हुड्डी का

    देह पत्ता खसा हुआ

    गाछ-जैसन हो गया था

    न, एलाज बहुत कराया

    हँसुली-टिकुली सब बिक गया

    महतारी का

    लगकागो पुरजा थमाके

    डागदर कहता था

    सिरफ दवाई से काम नहीं चलेगा

    खोराको अच्छा दिजिए!

    ग़रीब आदमी अब

    दूनों चीज़ कहाँ से लाता

    मालीक

    एकेगो के जोगाड़ में जिनगी

    कोम्हार के माटी हो जता है

    हाँ, कल जे खेला देखाके

    रामलोचन घर गया

    देखा

    लड़का मुर्गी नाहीत छटपटा रहा है

    आँय-बाँय बक रहा है

    कपार ख़ूबे लहक रहा था

    ओटे पैर ऊभागा

    बड़का डाकदर के

    साफ़ ठोक दिहिस

    पचासगो रुपइया गिन दो पहले

    बड़ा चिरौरी किया

    काहे पसीजता

    कोन कहता है डाकदार

    दोसरा भगवान होता है

    आदमीयो नय होता है

    नेखालिस बेपारी होता है ससुरा

    लचारी कम्पाउंडरे के

    ले गया साथ

    दूगो सूइया लिख के बोला

    अभी तोरंत ले आओ

    सूइया निकाल के दोकानबला माँगा

    तीस गो रुपइया

    रामलोचनवा के पास था

    अठारहेगो

    लिफफा फिरती ले के जेऊ धरे लगा

    एतना में एगो

    गाहक गया

    जैसे ही ओम्हार घूमा

    रामलोचनवा ले के पार

    एतना ज़ोर से भागा

    एतना ज़ोर से भागा

    जनु मरखैल बइल लागल हो पीछू

    नहीं सरकार, ओकरा हाथ

    तनको नहीं काँपा

    रानी शैब्या से कफ़न मँगता रामलोचन

    बेटा के लिए

    दवाई चोराता रामलोचन

    एक्के नहीं था हज़ूर

    ओतना ही फरक था दूनो में

    जेतना नाटक जिनगी में होता है

    आप सब साहेबान से अरज है

    अभी खेला

    दू दिन अऊर नहीं होगा

    असुविधा के लिए हम

    माफ़ी मँगते हैं।

    स्रोत :
    • पुस्तक : यह हरा ग़लीचा (पृष्ठ 95)
    • रचनाकार : निर्मला गर्ग
    • प्रकाशन : यात्री प्रकाशन
    • संस्करण : 1992

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