मंच पर
manch par
मैं खड़ी हूँ वहाँ अपनी पूरी तैयारी के साथ
मुझे जो बोलना है करना है
वह सब कुछ पहले से तय है
मैं सीख चुकी हूँ मौन और कथन के प्रभाव
सभी उतार-चढ़ाव और भंगिमाएँ
माथे पर पड़े बल और चेहरे की शिकनें सब दुरुस्त हैं
सिर्फ़ वह सब करना है मुझे बेहतर तरीक़े से
ताकि मैं वह दिखा सकूँ जो उन्हें देखना है
शब्दों में हो सकता है थोड़ा-बहुत उलटफेर
लेकिन उन्हें भी कई बार दोहराकर ठीक-ठीक याद किया जा सकता है
कोई भी दृश्य दोबारा नहीं लौटता
जैसे पहला प्रेम जो अनचाहे जीवन में प्रवेश कर जाता है
और सिवाय उत्सुकता और नएपन के उसमें कुछ भी नहीं होता प्रेम जैसा
या वियोग का वह समय जो हर पल मिलन में बदल जाता है
दोस्ती जो अक्सर बग़ल में बैठी होती है
ख़ुशी, दर्द, छटपटाहट, दोषमुक्ति या व्यर्थ की उठापटक
हर बार बदले हुए रूप में आते हैं
दूसरा आँसू भी पहले आँसू की तरह नहीं बहता
आकाश दोबारा नीले की जगह हो सकता है भूरा या लाल
हो सकता है अगली बार मैं काली पोशाक में दिखूँ
अवसाद से भरा हो मेरा चेहरा
लकीरें नहीं दिखें जिन्हें मैंने यत्न से साधा था
जितना ज़्यादा मैं समाती जाऊँगी अपने भीतर
उतना ही बढ़ता जाएगा मंच पर प्रकाश
वहाँ दर्शकों के बीच मैं बैठी हुई हूँ
इस जीवंत अभिनय का प्रमाण बनकर
वे सब देखते हैं मेरी ओर
जैसे वे सब मंच पर दिख रहे हैं मेरे साथ
हम लगातार त्रासदी और प्रहसन के बीच कोई जगह ढूँढ़ते हैं
और दर्शक दीर्घा से अपने को देखते हैं मंच पर प्रस्तुत होते हुए
हमारी आँखों में एक समझदारी है
एक दूसरे को सराहने का भाव
एक ईमानदार कोशिश जो हमने की
हम नहीं पूछते एक दूसरे से
इसमें कौन कितना रहा सफल।
- पुस्तक : रोशनी के रास्ते पर (पृष्ठ 91)
- रचनाकार : अनीता वर्मा
- प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
- संस्करण : 2008
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