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कखन होयत भोर

kakhan hoyat bhor

सुस्मिता पाठक

अन्य

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सुस्मिता पाठक

कखन होयत भोर

सुस्मिता पाठक

और अधिकसुस्मिता पाठक

    आइ काल्हिक राति

    बहुत नमहर होबऽ लागल अछि

    दिनक अपन रातिमे पूछैत अछि

    परिचय

    हवा आतंकित

    अन्धकार स्तब्ध

    चुप्पीकेँ चीरैत

    सर्द घामसँ जागल चेहराकेँ

    भिजा दैत अछि

    हल्लुक सन आहटि

    कोनो छोटो सन ठक-ठक

    एक क्षणक मृत्युक अनुभव

    आँचरमे साटि जाइत अछि

    घड़ी भऽ गेल अछि बन्न

    अथवा राति बितबे नहि करत

    नहि जानि कखन चिड़ै अनघोल करत

    कखन बाजत घंटी

    कखन पड़त अजान

    भोर कखन होयत

    कखन होयत भोर

    जे कखन फूल फुलयबाक

    बचा लेबाक लेल लहलहाइत फसिल

    कखन, कोन राति क्यो गढ़त हथियार

    सर्द चुप भेल मृत राति

    सन्देहास्पद आहटि

    ठक-ठक केर विरुद्ध

    कि भोर कखन होयत

    कखन होयत भोर।

    स्रोत :
    • पुस्तक : परिचिति (पृष्ठ 23)
    • रचनाकार : सुस्मिता पाठक
    • प्रकाशन : किसुन संकल्प लोक
    • संस्करण : 1997

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