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सायं संध्या

sayan sandhya

के.वी. रमणा रेड्डी

के.वी. रमणा रेड्डी

सायं संध्या

के.वी. रमणा रेड्डी

और अधिकके.वी. रमणा रेड्डी

    तुमने देखा है? पश्चिम दिशा, अस्तगत सूर्य की

    स्वर्णिल कांति से

    चंद्रमा की आरती उतार रही है

    आकाश में विचरण करने वाले मेघ

    कपूर की आरती से निष्क्रांत धुएँ की लहरों के सदृश हैं

    काल भुजंग की कुटिल गतियों के समान,

    उनकी गति है

    मनुष्य की कल्पना के सदृश हैं

    लताओं की भाँति नीरव रूप से चलते हैं

    नक्षत्र रूपी रत्नों को अपने फणों पर धारण करते हैं

    चित्र-विचित्र रूप धारण करते हैं

    पश्चिम दिशा रूपी वृक्ष पर

    चढ़ बैठते हैं

    पश्चिम के प्रांगण में जाने किस बुद्धिमती स्त्री ने

    मणियों का चौक पूरन किया है

    सायंकाल के वायुस्पर्श से

    किसी साब्राणी जैसा परिमल निकल रहा है

    वृक्षों के बीच में से दर्शन देने वाला संध्याकाश

    कैसा अपूर्व मनोहर चित्र है

    श्रेणीबद्ध होकर चलने वाले श्वेत विहंगों का विहार

    मन में कितना संभ्रम पैदा करता है

    कवियों के लिए इसमें कितनी आनंद सामग्री भरी पड़ी है

    भावना से बढ़कर 'नास्ति' को

    'अस्ति' में कौन परिवर्तित कर सकता है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : भारतीय कविता 1954-55 (पृष्ठ 413)
    • रचनाकार : के.वी. रमणा रेड्डी
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

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