तयशुदा समय की बीमार उपमाएँ
tayashuda samay ki bimar upmayen
कुहासे के छँटने में इतना विलम्ब था
कि इंतिज़ार कर रहे लोग
कुछ देर और ठहर जाते
तुम्हारे साथ ठहरने के सुख इतने बड़े थे
कि अधराये पाँव
पूरा शहर
देखने से पहले थक जाते
पूरा शहर देख चुके लोग
रास्ता भटक जाते
रास्ता भटक चुके लोगों ने
बहुत थक जाने पर
ठहरना चुना
जातीय अस्मिताओं के पहाड़ इतने बड़े थे
कि उन्होंने प्रेमियों को
घर की देहरी
नहीं लाँघने देना चुना
जब चलने और ठहरने से पेट भरा
तब लोगों ने यात्राओं का
दुःखांत लिखना चुना
तुमने
दृश्य से उठकर
चले जाना चुना
और मैंने चुनीं
तयशुदा समय की बीमार उपमाएँ!
- रचनाकार : मनीष कुमार यादव
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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